इस्लामिक बैंक से लोन लेने पर नहीं लगता कोई भी ब्याज? क्या हैं यहां के नियम
इस्लामिक बैंक शरीयत कानून के हिसाब से चलते हैं, इसलिए यहां वही नियम फॉलो किए जाते हैं जो इस्लाम के हिसाब से सही हों. इस्लाम में सूदखोरी को हराम बताया गया है.
बैंकिंग सेक्टर पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है. अपने लाइफस्टाइल को बेहतर बनाने के लिए लोग अब बैंकों से लोन लेने में हिचकिचा नहीं रहे हैं. बड़े शहरों में नौकरी करने वाले आपको आधे से ज्यादा युवा ऐसे मिल जाएंगे जो हर महीने किसी ना किसी लोन की ईएमआई भर रहे होते हैं. बैंक इन्हीं लोन पर मिलने वाले ब्याज से अपना पैसा बनाते हैं. लेकिन क्या हो अगर हम आपसे कहें कि एक बैंक ऐसा है जो लोन देने के बाद ब्याज नहीं लेता. चलिए आपको इस बैंक के बारे में बताते हैं.
क्या होता है इस्लामिक बैंक
इस्लामिक बैंक यानी ऐसा बैंक जो शरीयत कानून के हिसाब से चलता हो. सामान्य बैंकों से ये बैंक अलग होते हैं. इनमें सबसे बड़ा अंतर ब्याज का होता है. दरअसल, ये बैंक अपने ग्राहकों को लोन देने के बाद उनसे ब्याज नहीं लेते. इसके साथ ही अगर कोई इन बैंकों में अपना पैसा जमा करता है तो ये बैंक उन्हें उस पैसे पर ब्याज भी नहीं देते. जबकि, अन्य बैंक पैसे जमा करने पर आपको ब्याज देते हैं और लोन लेने पर आपसे ब्याज लेते हैं.
ऐसा क्यों करते हैं ये बैंक
जैसा की हमने आपको ऊपर ही बताया कि इस्लामिक बैंक शरीयत कानून के हिसाब से चलते हैं, इसलिए यहां वही नियम फॉलो किए जाते हैं जो इस्लाम के हिसाब से सही हों. इस्लाम में सूदखोरी को हराम बताया गया है. यानी आप किसी से ना सूद ले सकते हैं ना दे सकते हैं. इन बैंकों से आप जितना पैसा लेंगे बस उतना ही लौटाना पड़ता है और जितना पैसा आप जमा करेंगे उतना ही आपको वापिस मिलेगा.
इस्लामिक बैंकों के खास नियम
ये बैंक कुछ खास नियमों पर चलते हैं. इनमें पहला नियम होता है मुदरबाह. इसका मतलब होता है मुनाफा और नुकसान को आपस में बांट लेना. यानी बैंक को अगर मुनाफा हुआ तो वो अपने ग्राहकों के साथ उसे बांट लेगा और अगर उसे नुकसान हुआ तो ग्राहकों को भी बैंक के नुकसान को उठाना होगा. दूसरा नियम है मुशरफा. इसका मतलब होता है एक दूसरे की मदद के लिए हलाल कारोबार करना.
तीसरा नियम है वादियाह. इसका मतलब है पैसों की हिफाजत करना. यानी बैंकों में ग्राहकों के जो पैसे जमा हैं उसकी रक्षा करना. चौथा नियम है मुरबाह. यह एक तरह का बिक्री अनुबंध होता है. इसमें खरीदने और बेचने वाले दोनों बाजार मूल्य से ज्यादा पर बेचे जा रहे सामान की कीमत चुकाने पर सहमत होते हैं. पांचवां नियम है इजरा. इजरा का मतलब किसी अचल संपत्ति को पट्टे पर देना. इस्लामिक बैंकों की कमाई का यह सबसे बड़ा ज़रिया है.
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