देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस को पूरा देश बाल दिवस के रुप में मनाती है. आज देश के बच्चों से लेकर राजनेता चाचा नेहरू को याद करते हैं और नेहरू जी की जंयती के मौके पर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस दौरान लोग नेहरू के जीवन को याद करते हैं और उनके जीवन के बारे में जानने की कोशिश करते हैं. उनके विचारों की भी काफी बात की जाती है, जो काफी दूरदर्शी माने जाते थे. इसी क्रम में उनकी वसीयत की भी काफी चर्चा में रहती हैं. 


तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर नेहरू की वसीयत में उन्होंने क्या लिखा था, जिसमें एक अहम हिस्सा उनके अंतिम संस्कार को लेकर है. दरअसल, नेहरू ने अपनी वसीयत में अपने अंतिम संस्कार को लेकर काफी कुछ लिखा था और उन्होंने लोगों को पहले ही बता दिया था कि जब उनकी मृत्यु हो जाए तो अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख के साथ क्या करना है. तो जानते हैं उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी राख को लेकर क्या कहा था. 


वसीयत में क्या लिखा था?


नई दिल्ली स्थिति नेहरू मेमोरियल में नेहरू की वसीयत के हिस्से को यादगार के तौर पर पत्थर पर लिखा गया है. यहां के शिलालेख पर वसीयत को लेकर दी गई जानकारी में लिखा है कि उन्हें भारत के लोगों से इतना प्यार और स्नेह मिला है कि मैं इसका एक छोटा सा अंश भी उन्हें लौटा नहीं सकता और वास्तव में स्नेह जैसी मूल्यवान चीज के बदले में कुछ लौटाया भी नहीं जा सकता. 




अंतिम संस्कार को लेकर क्या लिखा था?


नेहरू ने अपनी वसीयत में लिखा था- 'मैं नहीं चाहता कि मेरी मौत के बाद किसी भी तरह का धार्मिक अनुष्ठान किया जाए. मैं ऐसे किसी भी अनुष्ठान में विश्वास नहीं करता. इसलिए मेरी मृत्यु के बाद ऐसा करना वास्तव में पाखंड होगा. ऐसा करना स्वयं को और अन्य लोगों को धोखा देने के समान होगा.' इसके साथ ही उन्होंने लिखा था कि अगर उनकी मौत विदेश में हो तो वहां ही अंतिम संस्कार कर दिया जाए और राख को इलाहाबाद भेज दिया जाए. अगर भारत में हो तो उसका दाह संस्कार होना चाहिए.


वहीं दाह संस्कार को लेकर उन्होंने लिखा था- 'मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले. मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर दी जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए. इसमें से कोई भी हिस्सा बचाकर नहीं रखा जाए. उन्होंने इसमें लिखा था गंगा में राख बचाने के पीछे कोई धार्मिक खयाल नहीं है और कोई धार्मिक भावना नहीं है. मुझे बचपन से गंगा से लगाव रहा और जैसे जैसे में बड़ा हुआ मेरा लगाव लगातार बढ़ता गया. 


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