भारत में दो गांवों के बीच मनमुटाव यानी लड़ाई तो काफी आम है. कई बार खबरें आती हैं कि दो गांवों के बीच आत्मसम्मान की लड़ाई को लेकर जंग छिड़ जाती है. लेकिन, झारखंड मों जो गांव ऐसे हैं, जिनके बीच आत्मसम्मान की लड़ाई तो है, लेकिन उस लड़ाई को लड़ने का तरीका काफी अलग है. खास बात ये है कि इन दोनों गांव की लड़ाई बुलबुल लड़ती हैं. जी हां. इस लड़ाई में बुलबुल ही हिस्सा लेती हैं और जिस गांव की बुलबुल जीत जाती है, वो गांव ही जीत जाता है. यानी किसी भी गांव के सम्मान का जिम्मा बुलबुल पर ही होता है और बुलबुल की लड़ाई से फैसला होता है कि उस बार कौनसा गांव किस पर हुकुम चलाएगा. 


ऐसे में सवाल है कि आखिर ये लड़ाई कैसे होती है और कब होती है. इसके अलावा जानते हैं कि इस लड़ाई की आखिर कहानी क्या है, जिससे आत्मसम्मान का जिम्मा बुलबुल को मिल गया. तो जानते हैं बुलबुल की लड़ाई से जुड़ी हर एक बात...


क्या है इस लड़ाई की कहानी?


मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, झारखंड और पश्चिम बंगाल बॉर्डर पर जो गांव हैं, जिनका नाम है गोपीबल्लभपुर उत्तर पाड़ा और दक्षिण पाड़ा. इन दोनों गांव में करीब 200 साल से बुलबुल की लड़ाई की परंपरा चली आ रही है और बताया जाता है कि एक बार दोनों गांव के विवाद को सुलझाने के लिए किसी महंत ने इस लड़ाई की शुरुआत की थी. उस दौरान गांव के लोग अंग्रेजों के सामने विवाद नहीं ले जाना चाहते थे, ऐसे में उन्होंने बुलबुल की लड़ाई से फैसला करने का फैसला किया. इसके बाद से हर साल ये लड़ाई परंपरा के तौर पर करवाई जाती है और इस बुलबुल की लड़ाई के आधार पर फैसला होता है कि इस बार कौनसा गांव किसकी बात मानेगा. 


कब करवाई जाती है ये लड़ाई?


अब ये लड़ाई मकर सक्रांति के मौके पर की जाती है और लड़ाई गांव के राधाकृष्ण मंदिर में होती है. लड़ाई के बाद जो जीत जाता है, उस गांव की बात दूसरा गांव मानता है और इस लड़ाई में कोई रंजिश नहीं है. 


होती कैसे है लड़ाई?


लड़ाई से करीब एक महीने पहले गांव के लोग बुलबुल को अपने घर लाते हैं और सेब, केला आदि खिलाकर लड़ाई के लिए तैयार किया जाता है. फिर लड़ाई करवाई जाती है. लड़ाई करवाने के लिए केले पर शहद लगाकर रख दिया जाता है और फिर इसे खाने के लिए दोनों बुलबुल आपस में लड़ाई करती हैं. इस लड़ाई से एक दिन पहले बुलबुल को कुछ भी खाने को नहीं दिया जाता है, जिससे वो भूखी रहती हैं और खाना पाने के लिए लड़ाई करती है. अगर कोई बुलबुल भाग जाए या फिर हार जाए तो गांव को हारा हुआ माना जाता है. इसके लिए एक कमेटी लड़ाई को देखती है और फैसला लेती है. 


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