Joshimath Sinking Reason: उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में हो रही घटनाओं की वजह से यह इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है. उत्तराखंड के जोशीमठ में हालात हर पल बिगड़ते जा रहे हैं. सैकड़ों लोगों को अभी तक खतरनाक इमारतों से रेस्क्यू किया जा चुका है. अभी तक 700 से ज्यादा घरों में दरारें हैं और जमीन के धंसने की खबरें आ रही हैं. वहीं, 86 घरों को असुरक्षित चिह्नित किया गया है. इसके अलावा, 100 से ज्यादा परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा चुका है. जमीन, घर, दुकान और बाकी इमारतों में आई दरारों को देख 'जोशीमठ डूब रहा है', 'जोशीमठ धंस रहा है' जैसी बातें कही जा रही हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि जोशीमठ में वो कौन से इलाके हैं जहां सबसे ज्यादा खतरा है और इसका कारण क्या है...
वैज्ञानिकों का कहना है कि कई निर्माणाधीन प्रोजेक्ट और शहर में सीवर सिस्टम की कमी इसका बड़ा कारण है. इस बीच यह जानकारी भी सामने आई है कि पूरा जोशीमठ खतरे में नहीं है. भले ही थोड़ी-बहुत दरारें दिख रही हों लेकिन चार वॉर्ड को छोड़कर बाकी के इलाकों में फिलहाल खतरा नहीं है.
कौन-से इलाके सुरक्षित, कौन-से खतरनाक?
जोशीमठ नगर पालिका परिषद में 9 वार्ड आते हैं. इसमें से मारवाड़ी वॉर्ड, सुनील वॉर्ड (औली की तरफ जाने वाला रास्ता), मनोहर बाग वॉर्ड और सिंहधार वॉर्ड इन चार वार्डों को सबसे ज्यादा खतरा है.. इसके अलावा, मारवाड़ी वॉर्ड में जेपी पावर कॉलोनी की कुछ इमारतों में और जमीन पर दरारें आई हैं. कुछ इलाकों में ये दरारें बहुत कम हैं तो कहीं ये भयावह रूप ले चुकी हैं.
तपोवन टनल से हो रहा नुकसान?
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े वैज्ञानिक धंसाव का कारण एनटीपीसी की 520 मेगावाट तपोवन-विष्णुगाद परियोजना को बताते हैं. इस परियोजना की टनल जोशीमठ के नीचे से ही होकर बन रही है. जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यह पूरा इलाका पहाड़ पर बसा हुआ है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस टनल को बनाने में भू जल स्रोत छेड़े गए हैं, जिससे पानी का अंदरूनी रिसाव होने लगा है और पहाड़ बैठ रहा है.
वैज्ञानिकों ने क्या कहा?
सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके नदी के करीब हैं. इसी क्षेत्र में अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम भी होता है. यहीं से ये नदियां बद्रीनाथ के लिए मुड़ती हैं. स्थिनीय लोगों को शक है कि पिछले साल आई बाढ़ की वजह से भी इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं. वहीं, IIT रुड़की के वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ में सीवर सिस्टम नहीं है और सारा पानी पहाड़ में जाता है. यह भी पहाड़ के बैठने की एक वजह हो सकती है.
मजबूत नहीं है जोशीमठ का पहाड़
वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और IIT रुड़की के वैज्ञानिकों का मानना है कि अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों की तेज धार जोशीमठ के नीचे पहाड़ी में कटाव कर रही हैं. यह कटाव आसानी से इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि जोशीमठ का पहाड़ पहले कभी ग्लेशियर रहा और फिर बर्फ खत्म होने के कारण बची मिट्टी-कंकड़ का ढेर है और मजबूत नहीं है.
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