जज, जस्टिस और मजिस्ट्रेट... क्या तीनों का मतलब एक ही होता है या इनमें कुछ अंतर भी है?
न्यायपालिका से जुड़े शब्द जज, जस्टिस और मजिस्ट्रेट आपने सुने होंगे. कई बार लोग इन सबको एक समझ लेते हैं, जबकि ये तीनों ही एक दूसरे से अलग होते हैं. आइए जानते हैं...
Difference Between Judge Justice and Magistrate: भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक है और यहां न्यायपालिका संविधान का अंग है. न्यायपालिका का कार्य नागरिकों की रक्षा और सुरक्षा के साथ उनके अधिकारों की रक्षा करना होता है. सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट या फिर जिला स्तर न्यायालय, ये सभी देश में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं. आपने सुना होगा कि कोर्ट में मामलों की सुनवाई जज, जस्टिस या मजिस्ट्रेट करते हैं. क्या ये तीनों अलग अलग होते हैं?... या फिर ये तीनों एक दूसरे के पर्यायवाची हैं? आइए जानते हैं...
न्याय व्यवस्था को बनाए रखते हैं
किसी भी देश में आम जनता पर होने वाले अत्याचार के न्याय के लिए वहां एक दुरुस्त न्याय व्यवस्था का होना जरूरी होता है. जज या न्यायाधीश इसी व्यवस्था का एक मुख्य अंग होता है. बात अगर जिला न्यायालय की करें तो यहां विभिन्न श्रेणी के न्यायाधीश होते हैं और ये सभी सेशन जज के नेतृत्व में कार्य करते हैं. न्याय व्यवस्था को संतुलित रखने और सुचारू रूप से चलाने के लिए सेशन जज बाकी न्यायाधीशों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर न्यायालय आवंटित करते हैं. वो यह भी निर्धारित करते हैं कि कौन किस प्रकार के मामलों की सुनवाई करेगा.
कोर्ट में आते हैं दो तरह के मामले
न्यायालय में न्याय के लिए दो तरह के मामले आते हैं, पहला सिविल मामले और दूसरा क्रिमिनल मामले. सिविल मामलों में अधिकार और क्षतिपूर्ति की मांग की जाती है. वहीं क्रिमिनल मामलों को हिन्दी में दांडिक मामले या फौजदारी मामले भी कह सकते हैं. इन मामलों में दंड की मांग की जाती है.
मजिस्ट्रेट क्या होता है?
मजिस्ट्रेट एक न्यायाधीश की तरह सिर्फ एक जिले के कानूनी मामलों को संभालता है लेकिन न्यायाधीश के रूप में उतनी शक्ति नहीं रखता है. मजिस्ट्रेट फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दे सकता है. मेजस्ट्रेट में सबसे ऊपर का पद होता है सीजेएम यानी चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट (CJM). मेजस्ट्रेट रेवेन्यू के मामलों की सुनवाई करता है और छोटे-मोटे सिविल मामलों की सुनवाई डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) या सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM) भी करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मजिस्ट्रेट पदनाम केवल प्रशासनिक अधिकारी को मिलता है.
जस्टिस क्या होता है ?
न्यायपालिका में जस्टिस सर्वोच्च पद होता है, इसे हिंदी में न्यायमूर्ति कहा जाता है. ये हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हैं. इनका प्रथम कर्तव्य होता है आम नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना. मौलिक अधिकारों के हनन के मामले सीधे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में की प्रस्तुत होते हैं और न्यायमूर्ति ही इनकी सुनवाई करते हैं.
जज, मजिस्ट्रेट और जस्टिस में अंतर
वैसे तो ये तीनों ही मूल रूप से न्यायाधीश होते हैं, लेकिन वरिष्ठता और जिम्मेदारियों के आधार पर इनके ये पदनाम निर्धारित किए जाते हैं. हालांकि इनकी नियुक्ति का प्रोसेस भी अलग-अलग होता है. जिला न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति हाईकोर्ट करती है. ये न्यायपालिका का अंग रहते हैं. जबकि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अथवा सब डिविजनल मजिस्ट्रेट की नियुक्ति राज्य शासन करता है और यह कार्यपालिका का अंग होते हैं.
न्यायमूर्ति की नियुक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के प्रावधानों के मुताबिक, भारत के राष्ट्रपति और संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद की जाती है.
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