बदलती दुनिया के साथ अपराध के मायने भी बदल रहे हैं. कुछ दशक पहले तक लोग सोच भी नहीं सकते थे कि 12 से 14 साल के बच्चे भी अपराध कर सकते हैं. लेकिन आज बच्चों की मनोदशा बदल रही है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां छोटे-छोटे बच्चे संगीन अपराधों में लिप्त पाए गए हैं. चलिए आज इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि अगर एक बच्चा अपराध करता है तो उसे कितनी सजा होती है.
7 साल से कम उम्र का बच्चा
अगर किसी सात साल से कम उम्र के बच्चे ने कोई अपराध कर दिया तो भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 82 के तहत उस पर कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता. यानी अपराध कितना भी गंभीर क्यों ना हो बच्चे पर कोई आपराधिक धारा नहीं लगाई जा सकती. दरअसल, कानून यह मानता है कि इस उम्र के बच्चों के पास इतनी समझ नहीं होती कि वह अपने कार्यों का परिणाम समझ सकें.
अगर उम्र 7 से 12 साल हो तो
अगर किसी ऐसे बच्चे ने अपराध किया है जिसकी उम्र सात साल है या फिर वह सात साल 12 साल के बीच का है तो अदालत ऐसे मामलों में पहले ये समझती है कि क्या बच्चे को अपने द्वारा किए गए कार्यो के परिणाम को समझने की परिपक्वता थी या नहीं. अगर बच्चे में अपने द्वारा किए गए अपराध के परिणाम को समझने की परिपक्वता पाई जाती है तो किशोर न्याय कानून के अनुसार, उस पर भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 83 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है.
अगर बच्चा 12 साल से अधिक का हो तब
भारतीय कानून की नजर में 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे अपराध करने में सक्षम होते हैं. अगर 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे ने कोई अपराध किया हो तो उस पर जेजे एक्ट 2015 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. जेजे अधिनियम 2015 में किए गए अपराध की गंभीरता के अनुसार अपराधों को 3 श्रेणियों में बांटा गया है - छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध. आपको बता दें, किशोर अपराधियों की सजा की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि उन्होंने किस श्रेणी का अपराध किया है.
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