कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का घर माना जाता है. एक बड़ा वर्ग है, जो एक कैलाश मानसरोवर की यात्रा करना चाहता है. अभी भारत से सीधे कैलाश मानसरोवर जाने वाला रास्ता बंद है और चीन के रास्ते कैलाश मानसरोवर जाया जा सकता है. चीन होकर जाने वाली यात्रा को लेकर कई नियम हैं और कई बार बैन लगा होने की वजह से भी लोग कैलाश मानसरोवर नहीं जा पाते हैं. लेकिन, अब कैलाश मानसरोवर के दर्शन के लिए मुश्किल नहीं होगी और ये भारत से ही संभव हो जाएगा. तो आज हम आपको बताते हैं कि अभी कैलाश मानसरोवर किस रूट से जाते हैं और भारत से दर्शन करवाए जाने के पीछे क्या कहानी है.


ऐसे में आज हम आपको कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में कुछ फैक्ट और नियम बता रहे हैं, जिसके बाद आप यात्रा के बारे में काफी कुछ समझ पाएंगे. साथ ही आपको ये क्लियर हो जाएगा कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा और दर्शन के लिए क्या करना होगा?


कैसे जाते हैं कैलाश मानसरोवर?


कैलाश मानसरोवर जाना विदेश का मामला है, इसलिए यहां जाने के लिए पासपोर्ट की जरुरत होती है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा में 2-3 हफ्ते लगते हैं और अलग अलग ट्रैक के जरिए यहां लोग जाते हैं. बता दें कि लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के जरिए कैलाश मानसरोवर जाते हैं और ये आईटीबीपी, विदेश मंत्रालय के जरिए होता है. इसके साथ ही यहां जाने से पहले हेल्थ को लेकर कई नियमों को पूरा किया जाता है. पहले चेकअप करवाया जाता है और हेल्थ फिटनेस के आधार पर परमिशन दी जाती है. 


कौन जा सकता है कैलाश?


कैलाश मानसरोवर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार सिर्फ भारतीय नागरिक ही भारत से यात्रा कर सकते हैं. ऐसे में हर एक यात्री के पास  01 सितंबर को कम से कम 6 महीने की शेष वैधता अवधि वाला भारतीय पासपोर्ट होना चाहिए और उम्र 70 साल से कम होनी चाहिए. विदेशी नागरिक आवेदन करने के पात्र नहीं हैं. अगर हेल्थ के हिसाब से देखें तो उस व्यक्ति का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 या उससे कम होनी चाहिए. साथ ही मेडिकली फिट होना भी आवश्यक है. 


अभी कहां से कर पाएंगे दर्शन?


अब बताया जा रहा है कि भारत में एक ऐसे स्थान के बारे में पता चला है, जहां से सीधे कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकते है, जिससे चीन जाने की जरुरत नहीं होगी. ये स्थान उत्तराखंड के पिथौरागढ जिले में लिपुलेख पहाड़ियों पर है. इस स्थान को लेकर दावा किया जा रहा है कि यहां से सीधे कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं और यहां से पर्वत की हवाई दूरी 50 किलोमीटर है. यानी उत्तराखंड से 50 किलोमीटर दूर के पर्वत को सीधे देखा जा सकता है. 


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