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सोना-चांदी और जवाहरातों से भरी है भारत की ये झील, जानिए यहां तक कैसे पहुंच सकते हैं

इस रहस्यमयी झील में अरबों का खजाना कहीं से आया नहीं है, बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने इसमें डाला है. आपको बता दें ये परंपरा आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चली आ रही है.

भारत एक ऐसा देश है जिसका हर कोना रहस्यों से भरा है. यहां आपको ऐसी ऐसी जगहें मिल जाएंगी,  जिनके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे. इसी तरह की एक जगह हिमाचल प्रदेश में है. यहां के मंडी जिले में कमरूघाटी के पास एक ऐसी झील है जिसमें लाखों करोड़ों का खजाना यू हीं पड़ा है. इसमें सोने चांदी के सिक्के, हीरे जवाहरात और ढेर सारे आभूषण भी शामिल हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि ये पूरा खजाना आपको पानी के ऊपरे से दिखाई देता है, लेकिन इसके बाद भी इसे कोई नहीं निकालता. यहां तक मुगल और अंग्रैज जैसे लुटेरों ने भी इस खजाने को छूने की हिम्मत नहीं दिखाई.

कहां से आया ये खजाना?

इस रहस्यमयी झील में दफ्न अरबों का खजाना कहीं से आया नहीं है, बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने इसमें डाला है. आपको बता दें ये परंपरा आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चली आ रही है. यहां आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि अगर आप अपनी कोई इच्छा पूरी करना चाहते हैं तो आपको इस झील के किनारे आकर उसे मन में दोहराना होगा और फिर अपना कोई सोने चांदी का आभूषण इस झील में डाल देना होगा. इसके अलावा कई श्रद्धालु इसमें सिक्के और नोट भी डालते हैं. ये सभी चीजें सालों साल से इसी झील में पड़ी हुई हैं. आज भी अगर आप इस झील के किनारे जाएंगे तो आपको ये पूरा खजाना नंगी आखों से ही दिख जाएगा.

कैसे बनी ये झील क्या है इसकी कहानी

इस झील की कहानी महाभारत के समय से जुड़ी हुई है. दरअसल, हम जिस कमरुनाग झील की बात कर रहे हैं, उसे इस राज्य में बाड़देव का दर्जा प्राप्त है. जबकि, श्रद्धालु इन्हें पांडवों के ठाकुर के रूप में भी जानते हैं. अब आपको इसकी कहानी बताते हैं. दरअसल, जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तब पहाड़ी राजा रत्नयक्ष भी महाभारत के युद्ध में शामिल होना चाह रहे थे. लेकिन उनकी एक शर्त थी कि वह सिर्फ हारने वाले के पक्ष से ही लड़ेंगे. दरअसल, उनका कहना था कि वह हारते हुए पक्ष की ओर से लड़ते हुए अपनी शक्तियों का प्रयोग करेंगे और उस पक्ष को जिता देंगे.

भगवान कृष्ण को जब इस बात का पता चला तो वो एक साधारण ग्वाले का रूप धर के रत्नयक्ष की ओर चल पड़े. जब वह रत्नयक्ष के पास पहुंचे और उसका पराक्रम देखा तो उन्हें यकीन हो गया कि अगर ये कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो पांडवों का जीतना मुश्किल हो जाएगा. भगवान कृष्ण ने इसका तोड़ निकाला और राजा से अपनी एक इच्छा पूरी करने को कह दिया. राजा रत्नयक्ष को लगा कि ये ग्वाला ही है उनसे क्या ही मांग लेगा. इस वजह से रत्नयक्ष ने हां कर दिया. जैसे ही राजा रत्नयक्ष ने हां किया श्री कृष्ण ने राजा रत्नयक्ष से उनका सिर मांग लिया.

भगवान कृष्ण के ऐसा करते ही रत्नयक्ष चौंक गए और समझ गए कि ये पांडवों की चाल है. इसके बाद रत्नयक्ष ने श्री कृष्ण से कहा कि आप मेरा सिर ले लीजिए, लेकिन मेरी महाभारत युद्ध देखने की बहुत इच्छा है. कहते हैं, उनकी इच्छा पूरी करने के लिए श्री कृष्ण ने रत्नयक्ष का सिर बांस पर टांग दिया. युद्ध जीतने के बाद पांडव यहां आए और उनके सम्मान में उन्होंने यहां रत्नयक्ष की स्थापना कि जिसे बाद इसे बड़ादेव कमरूनाग के नाम से जाना जाने लगा.

यहां तक कैसे पहुंच सकते हैं?

इस जगह पर अगर आप सड़क मार्ग से पहुंचना चाहते हैं तो आपको पहले शिमला पहुंचना होगा, इसके बाद शिमला से तत्तापानी से हो कर आप रोहांडा तक पहुंच जाएंगे. यहीं मौजूद है भारत की सबसे रहस्यमयी झील. इसके अलवा अगर आप मंडी से डायरेक्ट वहां पहुंचना चाहते हैं तो आप मंडी से डडौरी, बग्गी, चैलचौक से ज्यूणी होते हुए इस झील तक पहुंच जाएंगे.

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