भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा पर जाने की हिम्मत आजतक कोई नहीं कर पाया है. भारत के सबसे ऊंंचे पहाड़ कंचनजंगा 5 चोटियों से मिलकर बना है. कहा जाता है जिसने भी इस पहाड़ पर चढ़ने की हिम्मत की है वो या तो मारा गया है या फिर इसपर चढ़ ही नहीं सका है. स्थानिय लोग इस पहाड़ को देवता मानते हैं, तो वहीं विदेशियों के लिए ये एडवेंचर है और वैज्ञानिकों के लिए ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है. तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है इस पहाड़ की कहानी.
क्या है कंचनजंगा का इतिहास?
8वीं शताब्दी में पद्मसंभव नाम के बौद्ध साधु लोपों रिन्पोछे कंचनजंगा की देवी के रूप में पूजा की थी. तभी से बौद्ध मान्यताओं में इसका अलग ही महत्व है. प्रथम, मध्य, पश्चिम, दक्षिण और कांगबाचेन जैसी पांच चोटियों से मिलकर बनी कंचनजंगा को लेकर स्थानिय लोगों का मानना है कि इसकी रक्षा राक्षसों द्वारा की जाती है. तिब्बती समुदाय इस पर्वत को बेयुल डेमोशोंग यानी मौत और तकलीफ से आगे की दुनिया मानकर इसकी पूजा करता है.
इस पर चढ़नेे की जो भी कोशिश करता है तब भारी तबाही आती है. 1929, 1955 में इसपर चढ़ने की नाकामयाब कोशिशें की गई थीं. ऐसे में मौसम इतना खराब हुआ कि कोई इसपर चढ़ नहीं पाया. फिर साल 1977 में भारत से कर्नल नरेंद्र कुमार की अगुवाई में भारत का झण्डा पहली बार कंचनजंगापर फहराया गया था. इसी साल सरकार ने कंचनजंगा के साथ आसपास की घाटियों और- जंगलों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया है. वहीं आज भी पर्वतारोहियों के लिए ये पर्वत बड़ी चुनौती हैं. इसपर चढ़ने की मंशा लिये सैंकड़ों लोग यहां आते हैं. जिन्हें ये उम्मीद रहती है कि कंचनजंगा देवी उन्हें आशिर्वाद देंगी और वो ये पर्वत चढ़ पाएंगे. वहीं वैज्ञानिकों के लिए आज भी किसी रहस्य से कम नहीं है.
यह भी पढ़ें: एक ऐसा रेस्टोरेंट जहां 24 कैरेट गोल्ड से होती है दाल फ्राई, जानिए कहां मिलती है ये कीमती दाल