Marriage False Cases: बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के मामले ने सभी को हैरान कर दिया है. अतुल ने अपनी पत्नी पर प्रताड़ना के कई आरोप लगाते हुए सुसाइड कर लिया, जिसके बाद अब एक बार फिर देशभर में पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों की चर्चा शुरू हो गई है. अपने बयानों के लिए विवादों में रहने वालीं बीजेपी सांसद और एक्ट्रेस कंगना रनौत भी इस बहस में कूद पड़ी हैं. कंगना ने अपने ही अंदाज में पूरा ठीकरा पुरुषों पर फोड़ते हुए कहा कि ऐसे मामलों में 99% पुरुषों की गलती होती है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्या वाकई ऐसा है या फिर कंगना हर बार की तरह इस बार भी बिना किसी फैक्ट के बात कर रही हैं.
कोर्ट भी जता चुका है चिंता
अब इस बात में कोई दोराय नहीं है कि ज्यादातर मामलों में महिलाओं को ही घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है, पिछले कई सालों के आंकड़े ये गवाही देते हैं. दहेज से लेकर परिवार में कलह और मारपीट से परेशान होकर कई महिलाएं सुसाइड भी कर लेती हैं. हालांकि कुछ सालों में पति के खिलाफ झूठे मामलों की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ी है. इसे लेकर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चिंता जता चुके हैं और कुछ मामलों में फैसला भी सुनाया जा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि पति से सिर्फ बदला लेने की भावना से कानून (सेक्शन 498A) का गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
क्या है सेक्शन 498A?
अब बेंगलुरु वाले मामले के बाद सेक्शन 498A का काफी ज्यादा जिक्र हो रहा है, जिसके तहत तमाम महिलाएं अपने पतियों के खिलाफ मामला दर्ज करवाती हैं. इसमें शादीशुदा महिलाओं के खिलाफ होने वाले मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के मामले आते हैं. इसमें पति को तीन साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है. सबसे बड़ी बात है कि इस सेक्शन के तहत जमानत मिलना मुमकिन नहीं होता है, क्योंकि ये एक गैर जमानती अपराध है. इस मामले में पहले तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद तुरंत गिरफ्तारी नहीं होती है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
अब अगर आंकड़ों की बात करें तो सेक्शन 498A के तहत हर साल करीब एक लाख से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं. जिनमें से ज्यादातर मामले कोर्ट में जाते ही धड़ाम हो जाते हैं या फिर आपसी सहमति से सुलझा लिए जाते हैं. ज्यादा मामलों में समझौता ही देखा गया है. अब अगर कन्विक्शन रेट यानी कानून में सजा की दर की बात करें तो ये करीब 18% है. यानी 82 फीसदी मामलों में या तो समझौता होता है या फिर ये मामले कोर्ट में साबित नहीं हो पाते हैं.
अब झूठे मामलों की अगर बात करें तो इसके ताजा आंकड़े तो जारी नहीं किए गए हैं, लेकिन कुछ साल पहले के आंकड़ों से आप इसे समझ सकते हैं. साल 2011 से 2013 के बीच 31292 मामले ऐसे थे, जिनमें पत्नी ने पति के खिलाफ क्रूरता के आरोप लगाए, लेकिन ये मामले झूठे साबित हुए. कोर्ट ने इन मामलों में पतियों को राहत देते हुए मामला वहीं खत्म कर दिया. तब लोकसभा में गृह राज्य मंत्री ने ये आंकड़े पेश किए थे.
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