आज करवा चौथ है. करवा चौथ पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूरे दिन बिना कुछ खाएं पिएं व्रत करती है. हिंदू मान्यता में महिलाएं कई और व्रत भी अपने पतियों के लिए रखती हैं और कुछ व्रत अपने बच्चों के लिए भी रखती हैं, लेकिन क्या आप मुस्लिम धर्म के बारे में जानते हैं कि आखिर महिलाओं के फास्ट या रोजा रखने को लेकर क्या नियम है. दरअसल, कहा जाता है कि इस्लाम के हिसाब से महिलाएं अपने पति की इजाजत के बिना रोजा नहीं रख सकती है. तो जानते हैं कि इस्लाम में ये क्या नियम है और क्यों महिलाएं अपनी मर्जी से रोजा नहीं रख सकती.
क्या महिलाएं रख सकती हैं रोजा?
इस्लाम में महिलाओं के रोजा रखने को लेकर कुछ नियम हैं. जैसे अगर कोई मुस्लिम महिला नफिल फास्ट (रोजा) रखना चाहती हैं तो वो अपने पति की इजाजत के बिना नहीं रख सकती है. पति की इजाजत के बाद ही महिलाएं ऐसा कर सकती हैं. अब आपको इसके पीछे का कारण बताने से पहले बताते हैं कि आखिर ये नफिल फास्ट होता क्या है.
दरअसल, नफिल फास्ट (रोजा) एक ऐसा रोजा होता है, जो रमजान या मुहर्रम से अलग किया जाता है. यह रोजा किसी आम दिन किसी मन्नत को लेकर किया जाता है. यह किसी भी आम दिनों में किए जाने वाला एक रोजा है. इस रोजा को करने के लिए महिलाओं को अपने पति की परमिशन लेना आवश्यक है.
क्यों चाहिए परमिशन?
इस्लाम में बताया गया है कि मैसेंजर ऑफ अल्लाह ने कहा है कि एक महिला को अपने पति की इजाजत के बिना रोजा रखने की इजाजत नहीं है. हालांकि, रमजान की परिस्थिति अलग है और ये सिर्फ उन रोजा के लिए जो महिलाएं रमजान के अलावा अन्य दिनों में करती हैं.
नफिल रोजे को लेकर अधिकतर जानकारों का मत है कि पत्नी लगातार दो से ज्यादा रोजा यानी फास्ट नहीं रख सकती है. ये बात रमजान के महीनों के अलावा लागू होती है. साथ ही पति की ओर से इसके लिए मना करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं और पति के मना करने के बाद महिलाओं को रमजान के अलावा और कभी रोजा रखने की इजाजत नहीं है.
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