सोने से बनी काबा की चाबी किसके पास? बिना इजाजत तो सऊदी किंग भी नहीं जा सकते अंदर
सऊदी अरब के मक्का में स्थित काबा इस्लाम का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है. क्या आप जानते हैं कि सोने से बनी काबा के गेट की चाबी किसके पास है? आइए आज हम बताते हैं कि ये चाबी किसके पास है.
सऊदी अरब के मक्का में स्थित काबा इस्लाम का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है. यहां हर साल दुनियाभर से करोड़ों मुसलमान आते हैं, जिनके लिए वीजा से लेकर रहने तक का इंतजाम खासतौर पर सऊदी सरकार करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पवित्र काबा की चाबी किसके पास रहती है? दरअसल, सऊदी के शाही परिवार या प्रशासन का इससे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. आज हम आपको बताएंगे कि पवित्र काबा की चाबी किसके पास है.
इस परिवार से इजाजत लेना जरूरी
बता दें कि काबा की चाबी 16वीं सदी से से शायबा परिवार के पास है. इतना ही नहीं, बगैर उनकी इजाजत के कोई भी काबा के अंदर दाखिल तक नहीं हो सकता है. काबा की देखरेख और गेट खोलना समेत हर काम की जिम्मेदारी शायबा परिवार के पास है.
शायबा परिवार के पास कैसे आई चाबी?
शायबा परिवार के पास काबा की चाबी आने की कहानी काफी पुरानी और दिलचस्प है. जानकारी के मुताबिक, पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे पैगंबर इस्माइल को काबा की गार्जियनशिप सौंपी थी, जो उनके बेटों को ट्रांसफर हो गई. इसके बाद काबा का संरक्षण जुरहम जनजाति और फिर खुज़ा जनजाति के पास आया. इसके बाद पैगंबर के पूर्वज माने जाने वाले कुसै-बिन-किलाब ने गार्जियनशिप हासिल की. इस तरह एक हाथ से दूसरे हाथ होते हुए चाबी उस्मान बिन तल्हा तक पहुंची. बता दें कि उस्मान पहले मुसलमान नहीं थे. वर्ष 630 ईस्वी (8 हिजरी) में मक्का पर जीत हासिल करने के बाद पैगंबर मोहम्मद और शहाबा जब शहर में दाखिल हुए तो पाया कि काबा का दरवाजा बंद है और उस्मान बिन तल्हा ने चाबी छिपा दी है. पैगंबर ने अली को उस्मान से चाबी लेने के लिए भेजा. इस तरह चाबी पैगंबर के हाथ में आई और वह काबा का दरवाजा खोलकर अंदर गए और दो रकअत की नमाज अदा की.
फिर लौटा दी चाबी
पैगंबर मोहम्मद के चाचा अब्बास ने उनसे अनुरोध किया कि हमारा परिवार हज के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों की जिम्मेदारी उठाता है, इसलिये आप चाहें तो चाबी हमें सौंप सकते हैं. कहा जाता है कि उसी दौरान कुरान की एक आयत नाजिल हुई, जिसका अर्थ था, 'अल्लाह तुम्हें आदेश दे रहा है कि अमानत उन लोगों को लौटा दो, जिसकी है.' इसके बाद पैगंबर मोहम्मद फौरन इसका मतलब समझ गए और उन्होंने चाबी उस्मान बिन तल्हा को लौटा दी. जानकारी के मुताबिक, इसके बाद उस्मान ने इस्लाम कबूल कर लिया था. पैगंबर ने उन्हें बुलाकर कहा कि आज से चाबी तुम्हारे पास रहेगी. कोई और नहीं, बल्कि एक अत्याचारी तुमसे इसे छीन सकता है. उस्मान बिन तल्हा के निधन के बाद उनके चचेरे भाई शायबा को चाबी मिली और पीढ़ी दर पीढ़ी एक हाथ से दूसरे हाथ में ट्रांसफर होती आ रही है.
अब किसके पास है चाबी?
काबा की चाबी रखने वाले को 'सादीन' कहा जाता है. अभी शायबा के परिवार के सालेह-अल-शाइबी काबा के संरक्षक हैं और चाबी उन्हीं के पास है. अरब न्यूज के मुताबिक, अब तक 110 लोगों को काबा की देखभाल का सम्मान मिल चुका है.
सोने की बनी है चाबी
काबा की चाबी सोने की बनी है और बहुत हिफाजत से रखी जाती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 14वीं सदी के बाद से चाबी बदली नहीं गई है. काबा से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, चाबी इसलिए भी नहीं बदली गई है, क्योंकि डिजाइन में जरा सी हेर-फेर से ताला खोलने में परेशानी आ सकती है. वहीं, काबा के केयरटेकर कहते हैं कि चाबी बहुत खास है और डिजाइन आम चाबी से बहुत अलग है. इसको इस तरीके से बनाया गया है कि सिर्फ जिसके पास चाबी रहती है, वही इससे लॉक खोलना जानता है. उनके अलावा दूसरा कोई ताला नहीं खोल सकता है.
280 किलो का शुद्ध सोने का दरवाजा
काबा का मौजूदा दरवाजा भी सोने का है. सऊदी के मशहूर ज्वेलर अहमद बिन इब्राहिम ने किंग खालिद-बिन-अब्दुल-अजीज के कार्यकाल में इस दरवाजे को तैयार किया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, काबा का दरवाजा 280 किलो शुद्ध सोने का बना है.
केयरटेकर का क्या काम?
सऊदी गैजेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, काबा की गार्जियनशिप संभालने वाले का मुख्य काम गेट खोलना और बंद करवाना है. इसके अलावा साफ-सफाई और धुलाई जैसी चीजों की निगरानी भी शामिल है. काबा की धुलाई पवित्र जमजम और गुलाब के पानी से होती है. इसकी चारों दीवारें हर दिन सुगंधित पानी से साफ की जाती हैं और इस दौरान इबादत भी की जाती है.
बिना इजाजत शाही परिवार को भी एंट्री नहीं
अरब न्यूज के मुताबिक, यदि सऊदी के शाही परिवार का भी कोई सदस्य काबा आना चाहता है तो उन्हें भी शायबा परिवार से इजाजत लेनी होती है. सऊदी गैजेट के मुताबिक, रॉयल कोर्ट और मिनिस्ट्री ऑफ इंटीरियर ही शाही परिवार और शायबा परिवार के बीच को-ऑर्डिनेशन का काम करता है.
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