मार्कोस कमांडो बनने के लिए मौत को मात देना होता है, 3 साल तक चलती है टफ ट्रेनिंग
मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग इतनी कड़ी होती है कि कोई आम इंसान यहां एक दिन भी टिक नहीं सकता. इस फोर्स में शामिल होने के लिए जवानों की 3 साल तक बेहद कड़ी ट्रेनिंग चलती है.
कमांडो शब्द सुनते ही काली वर्दी के वो जवान हमारे आंखों के सामने आ जाते हैं, जो किसी भी दुश्मन को पल भर में धूल चटाने की ताकत रखते हैं. लेकिन जब आतंकी मार्कोस स्पेशलाइज्ड कमांडोज का नाम सुनते हैं तो उनके चेहरे पर मौत का खौफ साफ दिखता है. कहा जाता है कि इंडियन नेवी की से स्पेशल फोर्स जिसे दुनिया मार्कोस स्पेशलाइज्ड कमांडोज (Marcos Commandos) के नाम से जानती है किसी भी मिशन को पल भर में पूरा कर सकती है. अमेरिकी नेवी सील की तर्ज पर बनी ये फोर्स किसी भी दुश्मन के खिलाफ जल, थल और वायु में मोर्चा संभालने के लिए तैयार रहती है.
मार्कोस कमांडो क्या होते हैं?
मार्कोस कमांडो इंडियन नेवी की एक स्पेशल फोर्स है. जिसके बारे में कहा जाता है कि कई मामलों में वह दुनिया की टॉप फोर्स अमेरिकी नेवी सील से भी बेहतर है. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि अमेरिकी नेवी सील और मार्कोस कमांडो का एक साथ कई बार अभ्यास हो चुका है और इस अभ्यास में ये बात साफ हो चुकी है. आपको बता दें इंडियन नेवी की मार्कोस कमांडो फोर्स का गठन 1987 में हुआ था.
कैसी होती है इनकी ट्रेनिंग
मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग इतनी कड़ी होती है कि कोई आम इंसान यहां एक दिन भी टिक नहीं सकता. इस फोर्स में शामिल होने के लिए जवानों की 3 साल तक बेहद कड़ी ट्रेनिंग चलती है. इस ट्रेनिंग के दौरान जवान 25 से 30 किलो तक का वजन उठा कर कमर तक कीचड़ में धंसते हुए 800 मीटर की कठिन दौड़ पूरी करते हैं. यहां तक कि इन्हें जमा देनी वाली बर्फ, डुबा देनी वाली समुद्र में भी कड़ी ट्रेनिंग कराई जाती है. कई बार तो ट्रेनिंग के दौरान इन्हें 8 से 10 हजार मीटर की ऊंचाई से कुदा भी दिया जाता है.
सब पूरी नहीं कर पाते ट्रेनिंग
ये ट्रेनिंग इतनी कठिन होती है कि इस ट्रेनिंग में हिस्सा लेने वाला हर जवान इसे पूरी नहीं कर पाता. कई जवान तो ट्रेनिंग आधे में ही छोड़ देते हैं. कहा जाता है कि मार्कोस कमांडो के साथ ट्रेनिंग के दौरान जिस तरह की सख्ती दिखाई जाती है, वो किसी का भी हौंसला तोड़ सकती है.
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