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साल में दो बार ही बदल सकते थे कपड़े, बात-बात पर चाहिए थी कोर्ट की इजाजत... पहले ऐसे टेंट में रहते थे राम लला

महंत सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब राम लला के लिए भोज-राग मांगा जाता था तो प्रशासन हमें उतना नहीं देता था. यहां तक कि राम लला के लिए कपड़े भी हमें सिर्फ रामनवमी पर मिलते थे.

आज पूरी दुनिया में अयोध्या की चर्चा है. 22 जनवरी को राम मंदिर में राम लला की मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1885 में शुरू हुई राम मंदिर की कानूनी लड़ाई कितने पड़ावों से गुजरी है. चलिए आज इस आर्किटल में आपको बताते हैं कि आखिर जब राम मंदिर का मसला कोर्ट में था तब इस मंदिर में चीजें कैसे होती थीं. इसके अलावा आपको ये भी बताएंगे कि कैसे उन दिनों हर छोटी से छोटी चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट से परमिशन लेनी पड़ती थी. यहां तक कि राम लला के कपड़े भी रोज बदले नहीं जा सकते थे.

चबूतरे से मंदिर तक की कहानी

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ और नवाबी शासन का अंत हुआ तो उसी दौरान कुछ हिंदुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर एक चबूतरा बना दिया और वहां पूजा करने लगे. हालांकि, इस मामले के बारे में पहली बार लिखित रूप से शिकायत 30 नवंबर 1858 को बाबरी मस्जिद के एक कर्मचारी मौलवी मोहम्मद असगर ने की थी.

लेकिन कोर्ट में ये मामला पहली बार 9 जनवरी 1885 को पहुंचा. दरअसल, निर्मोही अखाड़े के महंत रघबर दास ने चबूतरे को राम जन्म स्थान बताते हुए भारत सरकार और मोहम्मद असग़र के ख़िलाफ़ सिविल कोर्ट में मुक़दमा दायर कर दिया था. ये लड़ाई सौ साल से ज्यादा समय तक चली और आज सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले से अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है. हालांकि, इस दौरान इस केस में बहुत कुछ हुआ.

बात-बात पर कोर्ट की इजाजत

राम मंदिर के महंत सत्येंद्र दास ने अमर उजाला को इंटरव्यू दते हुए राम मंदिर और राम लला से जुड़ी उन दिनों की कहानियों के बारे में बताया है जब जन्मभूमि का मामला कोर्ट में था. उन दिनों को याद करते हुए महंत सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब राम लला के लिए भोज-राग मांगा जाता था तो प्रशासन हमें उतना नहीं देता था. यहां तक कि राम लला के लिए कपड़े भी हमें सिर्फ रामनवमी पर मिलते थे.

सत्येंद्र दास कहते हैं कि सबसे बुरा हमें तब लगता था जब बारिश में मंदिर के ऊपर लगा तिरपाल फट जाता था और उसे बदलवाने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती थी. कई बार ऐसा हुआ है कि बारिश का पानी भीतर घुस जाता था और रामलला के कपड़े तक भीग जाते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब मंदिर में हर तरह की सुविधा होगी. कई पुजारी रामलला की सेवा में लगे रहेंगे. यहां तक कि इसके लिए 20 से 25 नए पुजारियों की ट्रेनिंग भी शुरू करा दी गई है.

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