जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति में कई तरह के बदलाव दिखने शुरू हो गए हैं. इस समय पूरा यूरोप बेस्शन गर्मी से झुलस रहा है. वहां पड़ रही गर्मी की भीषणता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एक व्यक्ति के दिमाग को डॉक्टर्स ने भुना हुआ बताया था. सिर्फ इतना ही नहीं, क्लाइमेट चेंज बहुत व्यापक स्तर पर दुनिया को प्रभावित करने वाला है. आइए जानते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले कुछ बदलावों के बारे में जानते हैं.


मेंढक छोटे हो रहे हैं 


जब से दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, तब से मेंढकों की प्रजातियों की संख्या भी कम हो रही है. प्यूर्टो रिको में नर कोकुई मेंढक भी छोटे हो रहे हैं. पहले ये मेंढक पहाड़ों की चोटियों पर पाए जाते थे, लेकिन उनके छोटे आकार के कारण अब वे निचले क्षेत्रों में रहने लगे हैं. यह परिवर्तन पिछले दो दशकों में देखने में आया है.


वायुयान में अस्थिरता बढ़ सकती है 


जलवायु परिवर्तन के कारण आकाशीय धाराओं में परिवर्तन हो सकता है, जिससे वायुयान में अस्थिरता बढ़ सकती है. एक अध्ययन के अनुसार, 1979 से 2020 तक लगातार वायुयान में टर्बुलेंस की घटनाएं बढ़ी हैं. 1979 में यह 17.7 घंटे था, जो 2020 में 27.4 घंटे हो गया है. मध्यम स्टार के टर्बुलेंस में 37% की वृद्धि हुई है. इससे वायुयान में टर्बुलांस बढ़ सकता है.


नींद कम हो सकती है


2010 तक, लोगों की वार्षिक नींद में 44 घंटे की कमी आई थी. इस सदी के अंत तक, यानी 2100 तक, यह कमी 58 घंटे तक बढ़ सकती है. इसका कारण ज्यादा कार्बन उत्सर्जन है, जिससे तापमान बढ़ रहा है.


कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं


हाल ही में एक अध्ययन के अनुसार, गर्मियों के दिनों में कुत्तों के काटने की घटनाएं भी बढ़ सकती हैं. अमेरिका के आठ शहरों में करीब 70 हजार कुत्तों के काटने की घटनाएं हुईं थीं. कुत्तों के काटने की घटनाओं में 11% की वृद्धि हुई थी.


जन्मदर में कमी हो सकती है


गर्मियों के बढ़ने से लोगों के बच्चों के जन्मदर में कमी आ सकती है. अगर तापमान 26.7 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता है, तो बच्चों के जन्मदर में 0.4% की कमी हो सकती है. इसका प्रजनन क्षमता पर भी असर हो सकता है, क्योंकि स्पर्म का मूवमेंट कम हो सकता है.


छिपकलियों के लिंग में परिवर्तन हो सकता है


ऑस्ट्रेलिया में सेंट्रल बियर्डेड ड्रैगन नामक छिपकलियों के लिंग में परिवर्तन हो रहे हैं. उनके अंडों के विकास के लिए तापमान की आवश्यकता होती है, और ज्यादा तापमान के कारण केवल मादा छिपकलियां ही अंडों से निकल सकती हैं.


एलर्जी की समस्या बढ़ सकती है


बढ़ते तापमान के कारण वसंत ऋतु का समय बढ़ सकता है, जिससे वातावरण में परागकण अधिक फैल सकते हैं, जिससे लोगों को अधिक एलर्जी हो सकती है. 1990 से 2018 तक एलर्जी वाले दिनों में वृद्धि हुई है. पहले 10 दिन होते थे, तो अब 20 दिन हो चुके हैं. परागकणों की संख्या भी बढ़ रही है.


धरती पर रोशनी में कमी हो सकती है


तापमान बढ़ने के कारण सूरज से आने वाली रोशनी धरती पर रिफ्लेक्ट होने में कमी हो सकती है. 1998 से 2017 तक के डेटा के अनुसार धरती की रोशनी में कमी हो रही है, क्योंकि पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर रिफ्लेक्ट करने वाले बादल कम हो रहे हैं.


ज्वालामुखियों के फटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं


अधिक गर्मी के कारण ज्वालामुखियों के फटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं. ज्वालामुखियों के फटने की घटनाएं तब बढ़ सकती है जब बर्फ पिघलने से उनके अंदर बुलबुले बन जाते हैं, जिनसे विस्फोट होता है. 


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