जानिए कहां है दुनिया का सबसे पुराना मंदिर, आज भी होती है पूजा
मुंडेश्वरी मंदिर बिहार में स्थित दुनिया का सबसे पुराना कार्यरत प्राचीन मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर सबसे पुराना मंदिर है, जहां आज भी पूजा-पाठ होता है. आइए आज इस प्राचीन मंदिर का इतिहास जानते हैं.
बिहार राज्य भारत के उत्तर पूर्व में स्थित है. इस राज्य का इतिहास 600 ईसा पूर्व पुराना है. पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र था. फिर धीरे-धीरे समय के साथ पटना का नाम पाटलिग्राम, कुसुमपुर, अजीमाबाद हुआ. इस राज्य में मौर्य सामाज्य और बौद्ध धर्म का विकास हुआ था. बता दें कि सम्राट अशोक का जन्म बिहार के पाटलीपुत्र (पटना) में ही हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि बिहार में दुनिया का सबसे कार्यरत प्राचीन मुंडेश्वरी मंदिर भी है. आइए इस प्राचीन मंदिर का इतिहास जानते हैं
मंदिर की प्राचीन इतिहास
माता मुंडेश्वरी का मंदिर बिहार के जिला कैमूर में मुंडेश्वरी पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. इस मंदिर को शिव-शक्ति मंदिर भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें माता शक्ति के अलावा भगवान शिव का अनोखा शिवलिंग है. मुंडेश्वरी मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है और दुनिया का सबसे कार्यरत प्राचीनतम मंदिर नाम इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान ने दिया है.
108 ईस्वी का इतिहास
मंदिर में मिले एक शिलालेख में कहा गया है कि सन 389 ईस्वी (उत्तर गुप्तकालीन) में भी यह मंदिर मौजूद था. इस मंदिर में कई शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे हैं. वहीं कुछ शिलालेखों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान ने इस मंदिर का निर्माण काल 108 ईस्वी माना है. बता दें कि मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण मंदिर में मिले महाराजा दुत्तगामनी की मुद्रा से भी होता है. बौद्ध साहित्य के मुताबिक महाराजा दुत्तगामनी अनुराधापुर वंश के थे और ईसा पूर्व 101-77 में श्रीलंका पर शासन करते थे. इस मंदिर को शककालीन भी बताया जाता है, इसका जिक्र मार्कण्डेय पुराण में किया गया है.
मंदिर की वास्तुकला
इसे पूरे मंदिर में पत्थरों का उपयोग हुआ है और यह मंदिर दुर्लभ अष्टकोणीय वास्तुकला के आधार पर बना है. इतना ही नहीं यह मंदिर बिहार में नागर शैली का सबसे पहला नमूना है. इसके चारों तरफ दरवाजे या खिड़कियाँ हैं और दीवारों में स्वागत के लिए छोटी-छोटी मूर्तियाँ अंकित की गई हैं. मंदिर की दीवारों को कल मूर्तियों और कलाकृतियों से सजाया गया है. वहीं प्रवेशद्वार पर द्वारपाल, गंगा और यमुना की आकृतियाँ अंकित हैं.
माता मुंडेश्वरी का नाम
प्राचीन कहानियों में कहा जाता है कि शुंभ और निशुंभ दानव के सेनापति चंड और मुंड थे. ये दोनों असुर इलाके में लोगों को प्रताड़ित करते थे. इसके बाद लोगों ने माता शक्ति से प्रार्थना की और उनकी पुकार सुनकर माता भवानी पृथ्वी पर आकर इनका वध किया था. देवी से युद्ध करते हुए मुंड इस पहाड़ी पर छिप गया था, लेकिन माता उस पहाड़ी पर पहुंचकर उसका वध कर दिया था. इसलिए उनका नाम मुंडेश्वरी माता पड़ा था. यहाँ माता मुंडेश्वरी प्राचीन प्रत्थरों की आकृति में वाराही के रूप में मौजूद हैं और उनका वाहन महिष है.
गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग
मंदिर के गर्भगृह में एक पंचमुखी शिवलिंग है. इसके बारे में बेहद रहस्यमयी कहनी कही जाती है. जानकारी के मुताबिक यह शिवलिंग सूर्य की स्थिति के अनुसार अपना रंग बदलता रहता है. यह शिवलिंग दिन में कम से कम तीन बार अपना रंग बदलता है. ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग का रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है. हालांकि शिवलिंग का रंग कब बदल जाता है, किसी को पता भी नहीं चलता है.
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