अयोध्या में बन रहे भगवान राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. अयोध्या में होने वाले इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तैयारियों के बीच भगवान राम की कहानियां भी बताई जा रही है. ऐसे में हम भी आपको भगवान राम के वनवास के दौरान की कुछ कहानियां बता रहे हैं. पिछले अंक में आपको बताया था कि भगवान राम के वनवास में उनकी मुलाकात हनुमान से कहां हुई थी और आज उस जगह क्या है. इसी क्रम में आज आपको बताते हैं कि वनवास के दौरान भगवान राम सबसे ज्यादा भारत के किस शहर में रुके थे. तो जानते हैं वो शहर आज कहां है और कितने दिन भगवान राम वहां रुके?
अपने वनवास में भगवान राम ने अयोध्या से धुनषकोटि और फिर लंका तक की यात्रा की थी. इन 14 साल के वक्त में वे अलग अलग जगहों पर रुके थे और एक जगह पर कुछ वक्त रहकर आगे बढ़े थे. भगवान राम, लक्ष्मण, सीता, जिन-जिन राज्यों में रुके थे, उसमें उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि शामिल है.
कहां सबसे ज्यादा वक्त तक रुके थे?
भगवान राम का वनवास 14 साल का था और माना जाता है कि इस वनवास के दौरान सबसे ज्यादा वक्त उन्होंने चित्रकूट में ही बिताया था. अयोध्या से चित्रकूट तक आने में भगवान को 10 दिन लगे थे. इसके बाद लंबे समय तक वे चित्रकूट और उसके आसपास के स्थान पर रहे थे. चित्रकूट से भगवान सुतीक्षण आश्रम तक गए थे और यहां आस पास घूमते रहे थे और उन्होंने इस दौरान कई ऋषि मुनियों के दर्शन किए थे.
अगर आप चित्रकूट जाते हैं तो वहां कई मंदिर, आश्रम को लेकर कहा जाता है कि वहां भगवान राम आए थे. हालांकि, चित्रकूट में बिताए गए वक्त को लेकर कई कहानियां हैं और अलग अलग टाइम की डिटेल सामने आती है. कई लोगों का कहना है कि भगवान यहां 12 साल तक रहे थे और कुछ लोगों को कहना है कि यहां सिर्फ डेढ़ साल रहे थे और बाकी 12 साल कुछ महीने दूसरी जगहों पर रहे थे.
भगवान राम के तीर्थों पर शोध कर रहे डॉ राम अवतार की किताब वनवासी राम और लोक संस्कृति के अनुसार, वनवास के 10 साल के बारे में काफी कम जानकारी मौजूद है. 14 साल के वनवास में 10 साल का वर्णन कुछ चौपाइयों में ही पूरा हो गया है और वाल्मीकि रामायण में 10 साल के लिए सिर्फ 3-4 श्लोक लिखे गए हैं. वहीं, रामचरितमानस में आधे हिस्से में 10 साल की बात लिखी गई है. ऐसे में बीच के वक्त की ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन ये कई रिपोर्ट में सामने आया है कि सबसे ज्यादा वे चित्रकूट और इसके आस-पास के इलाकों में रहे थे.
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