कोहिनूर... जिसका नाम सुनते ही समझ आता है कि ये किसी बेशकीमती चीज की बात हो रही है और वो बेशकीमती चीज है एक खास हीरा. कोहिनूर हीरे के बारे में आने बहुत कुछ सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं जिस खास हीरे को आज कोहिनूर के नाम से जाना जाता है, पहले इसका नाम कुछ और था. पहले कोहिनूर हीरे के पहचान कोहिनूर से नहीं थी. तो जानते हैं कि आखिर कोहिनूर का पहले नाम क्या था और किस तरह इसका नाम कोहिनूर पड़ा.
कोहिनूर के नाम के बारे में बताने से पहले आपको बता दें कि आज कोहिनूर लंदन रॉयल फैमिली के पास है, लेकिन इससे पहले ये कई लोगों के पास रह चुका है. मुगल बादशाहों से लेकर कई राजाओं ने इसे अपनी रॉयल्टी का सिंबल बनाकर यूज लिया है. कई साम्राज्यों और लोगों से होते हुए आझ कोहिनूर लंदन पहुंचा है. इससे पहले ये भारत में कई लोगों के पास रह चुका है.
क्या है कोहिनूर की कहानी?
1083 CE में गोदावरी नदी के पास मिले कोहिनूर को पहले वारानगल के मंदिर में देवी भद्रकाली की बाईं आंख में लगाया गया था. इसके लिए कहा गया था कि या तो इसे कोई महिला पहन सकती है या फिर भगवान इसे पहन सकते हैं. इसके बाद इसे भगवान को दिया गया, लेकिन अलाउद्दीन खिलजी ने इसे लूट लिया. फिर खिलजी वंश के पतन के बाद ये हीरा दिल्ली के शासक के पास चला गया. इसके बाद बाबर ने इब्राहिम लोदी को हरा दिया और कोहिनूर भी अपने कब्जे में ले लिया.
कोहिनूर 150 साल तक मुगलों के पास रहा. शाहजहां ने तो तख्त-ए-तौस पर इसे लगवाया था. जब औरंगजेब ने अपने पिता को जेल में डाल दिया तो इसे जेल के पास लगाया था, जिसमें वो ताजमहल की परछाई देख सके. मुगलों के बाद नादर शाह ने दिल्ली पर राज किया और हीरा उसके पास आ गया. इससे पहेल ये मोहम्मद शाह के पास था, जिसने इसे पगड़ी में छुपाया था और फिर ये पगड़ी के एक्सचेंज के साथ नादर शाह के पास आ गया. इसके बाद नादर शाह से ये हीरा उसके जनरल अहमद शाह अब्दाली के पास चला गया और फिर रणजीत सिंह के पास पहुंचा और फिर दुलीप सिंह. इसके बाद ये लंदन पहुंचा.
क्या था नाम?
वैसे तो कई शासकों ने इसे अपने हिसाब से नाम दिए. जब ये बाबर के पास था तो बाबर ने भी इसे नाम दिया था. बाबर ने इस हीरे को 'बाबर का हीरा' नाम दिया. लेकिन जब ये नादर शाह के हाथ में लगा तो उसे देखते हुए पर्शियन में शब्द निकला और वो था कोहिनूर. इसके बाद से इसका नाम कोहिनूर पड़ा और आज इसे कोहिनूर के नाम से जाना जाता है.
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