Kolkata Rape Murder Case: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में महिला डॉक्टर से हुई दरिंदगी की घटना पर सुप्रीम कोर्ट फिलहाल एक्शन मोड में है. सोशल मीडिया पर रेप पीड़िता की तस्वीर खासी वायरल हो रही है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताया है.
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म से पीड़िता की फोटो हटाने को कहा है. गौरतलब है कि कानूनन किसी रेप पीड़िता की सहमति से ही उसकी पहचान उजागर की जा सकती है. यही वजह है कि 2012 दिल्ली गैंगरेप पीड़िता का असली नाम लेने की जगह उसे 'निर्भया' कहा गया था. ऐसे में सवाल ये उठता है कि यदि कोई रेप पीडि़ता की तस्वीर यदि सोशल मीडिया पर शेयर करता है तो उसे क्या सजा मिलती है? चलिए जानते हैं.
रेप पीड़िता की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर करने पर क्या मिलती है सजा?
किसी रेप पीड़िता की तस्वीर शेयर करना ट्वीट/पोस्ट किशोर न्याय कानून, 2015 के प्रावधान का उल्लंघन है. इसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परिवार की जानकारियों समेत ऐसी कोई जानकारी मीडिया के रूप में प्रकाशित नहीं की जानी चाहिए जिससे किसी भी नाबालिग पीड़िता की पहचान हो सकती है.
बता दें किशोर न्याय (बाल संरक्षण और देखभाल) अधिनियम, 2015 में अपराधों का अलग-अलग वर्गीकरण है. इस अधिनियम के मुताबिक, 'गंभीर अपराध' का मतलब ऐसे अपराध से है जिनके लिए किसी भी कानून के तहत सजा 3-7 साल के बीच कारावास है. जघन्य अपराध की श्रेणी में ऐसे अपराधों को रखा जाता है जिसके लिए किसी भी कानून के तहत न्यूनतम सजा 7 साल या उससे ज्यादा की कैद है. दंड प्रक्रिया संहिता के तहत मामलों में मुकदमे की प्रक्रिया का पालन करते हुए दोनों छोटे अपराधों और गंभीर अपराधों का निपटारा बोर्ड की ओर से किए जाने का प्रावधान है. अपराध की एक और श्रेणी है. जिसमें न्यूनतम सजा 7 साल से कम है या कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है, लेकिन ज्यादा से ज्यादा सजा 7 साल या फिर उससे ज्यादा की हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मीडिया संस्थान जिस तरह से कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में दरिंदगी की शिकार हुई पीड़िता का नाम और उसकी पहचान उजागर कर रहे हैं, वो पूरी तरह गलत है. इसके साथ ही कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दी गई व्यवस्था के भी खिलाफ है क्योंकि रेप पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की जा सकती.
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