स्पेसक्राफ्ट आदित्य के आगे क्यों जुड़ा L1 ? जानिए क्या है इसकी वजह
स्पेसक्राफ्ट आदित्य एल1 का नाम तो आप सभी ने जरूर सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इसका मतलब क्या है, अगर नहीं, तो आइए आपको बताते हैं आदित्य एल1 नाम कैसे पड़ा.
इसरो का आदित्य-L1 स्पेसक्राफ्ट 126 दिनों में 15 लाख किमी की दूरी तय करने के बाद आज यानी 6 जनवरी को सन-अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) पर पहुंच गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने आदित्य-L1 के हेलो ऑर्बिट में एंट्री करने की देशवासियों को बधाई दी है. लेकिन क्या आप जानते है कि आदित्य स्पेसक्राफ्ट में L1 क्यों जोड़ा गया है और इसका क्या अर्थ है. आज हम आपको बताएंगे कि स्पेसक्राप्ट में L1 का मतलब क्या है.
स्पेसक्राफ्ट की लॉन्चिंग
आदित्य L1 को 2 सितंबर की सुबह 11.50 बजे PSLV-C57 के XL वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. लॉन्चिंग के 63 मिनट 19 सेकेंड बाद स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की 235 Km x 19500 Km की कक्षा में स्थापित कर दिया था.
क्यों स्पेसक्राप्ट आदित्य के आगे जुड़ा L1?
पृथ्वी से सूरज के बीच की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है. इस बीच 5 लैग्रेंज पॉइंट्स पड़ते हैं जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 पॉइंट नाम से भी जानते हैं. बता दें कि लैग्रेंज पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है. इन पांच पॉइंट पर सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है. बता दें कि L1, L2, L3 अपनी स्थिति बदलते रहते हैं, लेकिन L4 और L5 पॉइंट अपनी स्थित नहीं बदलते हैं. ईसरो का पहला सौर मिशन का पड़ाव L1 है, जो पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर है. पहले पड़ाव के नाम की वजह से ही आदित्य के आगे एल1 को जोड़ा गया है.
सात पेलोड
आदित्य पर सात वैज्ञानिक पेलोड तैनात किए गए हैं. इनमें विजिबल एमिशन लाइन कोरोनोग्राफ (वीईएलसी), सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (सूइट), सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (सोलेक्सस), हाई-एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (हेल1ओएस) शामिल हैं, जो सीधे तौर पर सूर्य को ट्रैक कर सकते हैं. वहीं तीन इन-सीटू मापने वाले उपकरण हैं, जिनमें आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स), प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए), और एडवांस थ्री डाइमेंशनल हाई रिजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर (एटीएचआरडीएम) शामिल हैं.
सूर्य की स्टडी जरूरी क्यों ?
जिस सोलर सिस्टम में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है. इसके अलावा भी सभी आठ ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते हैं. सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन और ऊर्जा दोनों है. इन्हें हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं. सूर्य का अध्ययन करके ये समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले बदलाव अंतरिक्ष को और पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं. विज्ञान कहता है कि सूर्य से चुंबकीय कणों (मैग्नेटिक पार्टिकल्स) का विस्फोट होता है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक चीजें खराब हो सकती हैं.इसे सोलर फ्लेयर कहते हैं. जब ये फ्लेयर पृथ्वी तक पहुंचता है तो पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड हमें इससे बचाती है. बता दें कि अगर ये अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स से टकरा जाए तो ये खराब हो जाएंगी और पृथ्वी पर कम्युनिकेशन सिस्टम से लेकर अन्य चीजें बंद हो जाएगी. बता दें कि सबसे बड़ा सोलर फ्लेयर 1859 में पृथ्वी से टकराया था, इसे कैरिंगटन इवेंट कहते हैं. जानकारी के मुताबिक तब टेलीग्राफ कम्युनिकेशन प्रभावित हुआ था, इसलिए इसरो सूर्य को समझना चाहता है.
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