खूबसूरत समुद्री तटों से घिरे हुए लक्षद्वीप में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों भारत के इस सबसे छोटे केंद्रशासित प्रदेश की यात्रा की थी. जिसके बाद से लगातार लक्षद्वीप यात्रा की तस्वीरें भारत समेत दुनियाभर में हलचल पैदा कर रही हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लक्षद्वीप में करीब 97 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है. आजादी के वक्त अधिक मुस्लिम आबादी के कारण ही पाकिस्तान इस प्रदेश पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा था. आज हम आपको बताएंगे कि भारत के लौहपुरुष सरदार पटेल ने कैसे लक्षद्वीप को बचाया था.
लक्षद्वीप पर थी पाकिस्तान की नजर
आजादी के समय 1947 में भी लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी. आज भी लक्षद्वीप में करीब 97 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है. आजादी के वक्त पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने सोचा कि लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी है और भारत ने इस पर दावा नहीं किया है, इसलिए ये लोग पाकिस्तान में आ जाएंगे. लेकिन सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से लक्षद्वीप को भारत में शामिल किया. दरअसल लियाकत अली खान ने जब पाकिस्तानी सेना को समुंद्र के रास्ते लक्षद्वीप की तरफ भेजा था. इस बात की जानकारी सरदार पटेल को हो गई थी. जिसके बाद सरदार पटेल ने आरकोट रामास्वामी मुदालियर और आरकोट लक्ष्मणस्वामी मुदालियर को लक्षद्वीप के विलय की जिम्मेदारी दी थी. उस वक्त सरदार पटेल ने दोनों तुरंत लक्षद्वीप जाकर मुदालियर भाईयों को भारतीय तिरंगा फहराने के लिए कहा था. पाकिस्तानी युद्धपोत पहुंचने से पहले ही भारतीय सेना लक्षद्वीप पहुंचकर झंडा फहरा दिया था. जिस कारण पाकिस्तानियों को वापस जाना पड़ा था. इतिहासकार बताते हैं कि अगर आधे घंटे की भी देरी होती तो मामला उल्टा हो सकता था. तब से लक्षद्वीप भारत का अभिन्न अंग है. 1956 में भारत सरकार ने यहां के सभी द्वीपों को मिलाकर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया और 1973 में इन द्वीपसमूहों का नाम लक्षद्वीप कर दिया गया था.
कौन थे मुदलियार ब्रदर्स ?
रामास्वामी मुदलियार मैसूर के 24वें और अंतिम दीवान थे, जबकि उनके भाई लक्ष्मण स्वामी मुदलियार एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे. जो लगभग 20 वर्षों तक मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। दोनों भाईयों का जन्म कुरनूल में एक तमिल भाषी परिवार में हुआ था. सरदार पटेल के आदेश के बाद इन भाईयों ने ही लक्षद्वीप में तुरंत तिरंगा फहराया था.
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