पापुआ न्यू गिनी में भूस्खलन की वजह से लगभग 2000 लोगों के मरने की आशंका है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या वैज्ञानिकों के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिसकी मदद से वो भूकंप और बारिश की तरह लैंड स्लाइड के बारे में भी पहले से पता लगा सकें. चलिए आज इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि आखिर भूस्खलन के बारे में पहले से पता लगा पाना विज्ञान के लिए कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है.
भूस्खलन होता कैसे है?
भूस्खलन एक भूवैज्ञानिक घटना है. दरअसल, जब जमीन के एक हिस्से के नीचे मौजूद पत्थर, मिट्टी और मलबा नीचे की ओर खिसकने लगता है तो वह भूस्खलन की घटना कहलाती है. अक्खर भूस्खलन पहाड़ी जगहों पर होता है. अक्सर भूस्खलन की घटना भूकंप या फिर भारी बारिश की वजह से होती है. दरअसल, जब भूकंप आता है तो जमीन अंदर से हिलने लगती है.
ऐसे में मिट्टी और पत्थरों का जो जमाव होता है वो टूटने लगता है और इसकी वजह से मिट्टी ऊपर की ओर से नीचे की ओर खिसकने लगती है. वहीं जब भारी बारिश होती है तो मिट्टी गीली हो जाती है और मिट्टी का जुड़ाव पत्थरों से, पेड़ों से कमजोर होने लगता है और फिर एक समय ऐसा आता है कि मिट्टी मलबे के साथ नीचे की ओर खिसकने लगती है.
इंसान भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार
प्राकृतिक घटनाओं के अलावा इंसान भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार हैं. पहाड़ों पर जिस तरह से पेड़ों की कटाई हो रही है और रोज़ नए-नए निर्माण हो रहे हैं, उसकी वजह से पहाड़ों की मिट्टी ढीली हो गई है. इसके अलावा, पहाड़ों पर सड़कों का निर्माण करने के लिए विस्फोट, पत्थरों के लिए पहाड़ों का भारी कटाव भी इसके कुछ मुख्य कारणों में से एक हैं.
भूस्खलन का प्रिडिक्शन
हर साल भूस्खलन की वजह से हजारों बड़ी घटनाएं दुनियाभर में होती हैं. लाखों लोगों की इसके चलते जान चली जाती है. लेकिन इसके बाद भी भूस्खलन के बारे में पहले से पता लगा पाना काफी मुश्किल है. दरअसल, पहाड़ों पर कहां किस वक्त भूस्खलन हो जाए, इसकी मैपिंग कर पाना लगभग नामुमकिन है. हां, ये जरूर है कि सरकार अगर चाहे तो कुछ इलाकों की मैपिंग कर के और वहां की मिट्टी का अध्ययन कर के लोगों को पहले सा आगाह जरूर कर सकती है कि ये जगह भूस्खलन के मामले में डेंजर जोन में है.
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