किसी भी व्यक्ति को जब कानूनी सलाह की जरूरत होती है, तो वो सबसे पहले वकील को खोजता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट में वकीलों को उनका चैंबर कैसे मिलता है. क्योंकि किसी भी कोर्ट में वकील की पहचान उसका चैंबर ही होता है. आज हम आपको बताएंगे कि सुप्रीम कोर्ट में वकीलों को चैंबर कैसे मिलता है.
कैसे मिलता है चैम्बर?
देश के सभी कोर्ट की अलग-अलग बार एसोसिएशन होती है. इसके अलावा एक चेम्बर अलॉटमेंट कमेटी होती है. वहीं इस कमेटी का हेड उस कोर्ट का प्रमुख होता है. जैसे सुप्रीम कोर्ट की चेम्बर अलॉटमेंट कमेटी का हेड चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और हाई कोर्ट के चेम्बर अलॉटमेंट कमेटी का हेड वहां का चीफ जस्टिस होता है. ठीक इसी तरह से दूसरे कोर्ट के प्रमुख भी उस कमेटी के प्रमुख होते हैं.
इसके अलावा चेम्बर को आवंटित करने का काम चेम्बर अलॉटमेंट कमेटी करता है. जो भी वकील जिस कोर्ट में प्रैक्टिस करता है, उसको वहां की बार एसोसिएशन में रजिस्ट्रेशन कराना होता है. इसी के साथ उन्हें चैम्बर अलॉटमेंट कमेटी में फॉर्म भरने का विकल्प मिलता है. यह फॉर्म भरने के साथ ही वो चैम्बर अलॉटमेंट की वेटिंग लिस्ट में आ जाते हैं. इसके बाद उस कोर्ट में जब भी चैम्बर उपलब्ध होगा, तो उनके नम्बर के हिसाब से उन्हें चैंबर मिल जाता है.
कुछ विशेष अधिकार
हालांकि इस कमेटी के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं. जैसे वो किसी एक कैंडिडेट को चुनकर भी विशेष परिस्थिति में चैम्बर अलॉट कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के मामले में यहां पर कुछ अलग कैटेगरी हैं. जैसे (एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सिस्टम), नॉन- AOR, रेजिडेंट, नॉन रेजिडेंट है. जानकारी के मुताबिक इसके आधार पर ही कमेटी चैम्बर अलॉट करती है. बता देंकि हाई कोर्ट और लोवर कोर्ट में भी कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर ज्यादातर अलॉटमेंट पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर होते हैं. आसान भाषा में कहे तो जो पहले फॉर्म भरता है, उसको पहले चैंबर मिलता है.
कितनी जमा होती है फीस?
जानकारी के मुताबिक कोर्ट में चैंबर अलॉटमेंट के समय कैंडिडेट को 4 हजार रुपए सिक्योरिटी जमा करानी पड़ती है. वहीं अगर कोई चैम्बर बड़ा है, तो उसे दो वकीलों को भी अलॉट किया जा सकता है. इसके अलावा हर चैम्बर के लिए लाइसेंस फीस समय-समय पर भारत सरकार तय करती है, जिसे वकीलों को जमा कराना होता है. इसके अलावा वकीलों को कोर्ट में बिजली, पानी समेत दूसरे जरूरी खर्च भी देने होते हैं.
जानकारी के मुताबिक कुछ परिस्थितियों में पिता की जगह उनके बेटे को भी चैंबर अलॉट किया जाता है. हालांकि ये फैसला उस कोर्ट के कमेटी प्रमुख लेते हैं. कोई बाहरी व्यक्ति इसमें दखल नहीं दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट के अलावा बाकी सभी कोर्ट में नियम एक जैसे हैं.
ये भी पढ़ें: इंटरनेट की दुनिया का पिग बुचरिंग स्कैम, जानें इस स्कैम से बचने का तरीका