रेप के बाद जन्मे बच्चे की कैसे होती है परवरिश? जानें इसे लेकर क्या है नियम
कई बार रेप के बाद पीड़िता गर्भवती हो जाती है. कई केस ऐसे होते हैं जिसमें पीड़िता के पास अबॉर्शन का ऑप्शन नहीं होता. तो फिर उन बच्चों की परवरिश कैसे होती है?
रेप के बाद किसी स्त्री कई बार गर्भवती हो जाती है. कई मामलों में उसे गर्भ खत्म करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. पिछले साल यानी साल 2023 में गुजरात में रेप की शिकार 16 साल की नाबालिग 7 महीने की प्रेग्नेंट थी. उसके पिता ने अबॉर्शन की अनुमति के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि 17 साल में लड़कियों के लिए मां बनना आम बात है. उन्होंने रेप पीड़ित को मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दी और कहा कि अगर लड़की और भ्रूण दोनों स्वस्थ हैं तो अबॉर्शन की अनुमति नहीं दे सकते. इसके अलावा भी इस तरह के केस अदालत के सामने आते रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर रेप के बाद जन्मे बच्चों की परवरिश कौन करता है? चलिए जानते हैं.
रेप से जन्में बच्चों के लिए क्या हैं अदालतों के निर्देश?
नवंबर 2015 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग से रेप के बाद जन्में बच्चे का रेपिस्ट पिता की संपत्ति पर हक होगा. वहीं दिसंबर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के कारण जन्में बच्चे को मां से अलग मुआवजा देने का आदेश दिया था. वहीं अप्रैल 2017 में एक रेपकेस की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि रेप पीड़िताओं को मुआवजा देना पर्याप्त नहीं है. उनसे जन्में बच्चों के लिए पॉलिसी बने. वहीं फरवरी 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेपिस्ट को रेप से जन्में बच्चे को 2 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया था.
कहां पलते हैं बच्चे?
रिपोर्ट्स के मुताबिक इस तरह जन्में बच्चों के लिए फिलहाल भारत में कोई कानून नहीं है. चाइल्ड राइट्स एक्सपर्ट के मुताबिक, हर जिले में चाइल्ड वेलफेयर कमेटी होती है, जो कारा, मेडिकल और मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स और सोशल वर्कर्स की मदद से काम करती है. इन सबकी रिपोर्ट और पीड़ित की हेल्थ को ध्यान में रखकर बच्चे को जन्म देने के बारे में फैसला लिया जाता है.
बच्चे के जन्म के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमेटी तय करती है कि उसकी परवरिश और देखभाल कैसे की जाएगी. ऐसे बच्चे एक्सिडेंटली जन्म लेते हैं, पीड़िता अपनी मर्जी से प्रेग्नेंट नहीं होती. उसकी प्रेग्नेंसी एक बुरे हादसे का नतीजा होती है, जिसे समाज की भाषा में रेप कहा जाता है. इस स्थिति में यदि मां-बाप और परिवार बच्चे को पालने के लिए तैयार नहीं हैं, तो कमेटी उसे 'चाइल्ड नीड एंड केयर प्रोटेक्शन' के तहत लाती है. इसके बाद राज्य सरकार बच्चे को कस्टडी में ले लेती है और उसे शेल्टर होम पहुंचा दिया जाता है. शुरुआत में बच्चे को ब्रेस्टमिल्क की जरूरत होती है. ऐसी स्थिति में यदि पीड़िता अनुमति देती है, तभी उसे मां का दूध मिल पाता है. इसके बाद कारा की मदद से बच्चे को गोद देने की कोशिश की जाती है.
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