Lift Act in UP: शहरों में कंक्रीट के जंगल बनाने की कवायद जारी है. कंक्रीट के जंगल से मतलब है बहुमंजिला इमारत. इस तरह की इमारत में लिफ्ट की भूमिका काफी अहम हो जाती है. कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती है, जिसमें लिफ्ट अचानक से चलते-चलते रूक जाती है, जो एक बड़े हादसे का कारण बनती है. यह देश के लगभग बड़े शहरों में मौजूद बड़ी इमारतों में देखने को मिलता है. लिफ्ट बनाते वक्त किन बातों का ध्यान दिया जाना चाहिए और अगर उसका उल्लंघन होता है तो क्या कार्रवाई होगी? इसकी जानकारी लिफ्ट एक्ट में मिलती है. यूपी में भी जल्द इस एक्ट को मंजूरी मिल सकती है. अभी यह नियम देश के कुछ राज्यों में ही लागू है. आइए इस एक्ट के बारे में समझते हैं.


इमारतों में लिफ्टों की संख्या कितनी हो सकती है?


जहां तक लिफ्टों की संख्या का सवाल है, अभी तक इसके लिए कोई नियम तय नहीं है. भारतीय मानक (आईएस) 14665 भाग 2, खंड 1, और भारत का राष्ट्रीय भवन कोड (एनबीसी) 2016 इसकी जानकारी मिलती है. 15 मीटर से ऊंची इमारतों के लिए, आठ यात्रियों वाली लिफ्ट जो स्वचालित दरवाजे और 60 सेकंड में सबसे ऊपरी मंजिल तक पहुंचने की क्षमता के साथ होनी चाहिए. उस लिफ्ट में फायर सेफ्टी का होना भी अनिवार्य होता है. एनबीसी 2016 एक्ट के मुताबिक, 30 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली इमारतों में स्ट्रेचर लिफ्ट की आवश्यकता होती है. स्ट्रेचर लिफ्ट उस तरह की लिफ्ट को कहते हैं, जिसमें आप जिस फ्लोर पर चाहें एक बार में ही जा सकते हैं. 


इन राज्यों में लागू है यह नियम


वर्तमान में महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली सहित 10 भारतीय राज्यों में लिफ्ट लाइसेंस की आवश्यकता है. प्रत्येक राज्य का लिफ्ट अधिनियम उस राज्य के भीतर लिफ्टों के लिए अलग-अलग प्रावधान है. लिफ्टों के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित कोड ऑफ प्रेक्टिस का पालन करना आवश्यक है. नियम के अनुसार, लिफ्ट के अंदर मिरर का उपयोग किया जा सकता है. हालांकि, यह अनुशंसा की जाती है कि वे स्प्लिंटर-प्रूफ होने चाहिए और किसी भी स्थिति में लिफ्ट टूटने पर यात्रियों को चोट नहीं पहुँचनी चाहिए.


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