इस दुनिया में कई जीव हैं जो अपने शरीर के अंगों को त्याग कर उन्हें फिर से उगा या बना लेते हैं. इनमें छिपकली सबसे सरल उदाहरण है. छिपकली की पूंछ अगर कभी कट जाए तो वो कुछ दिनों में उसे वापिस उगा लेती है. इसी तरह सांप अपनी स्किन के साथ करता है और केकड़े अपनी खोल के साथ. यानी की धरती पर रहने वाले जीवों में ये गुण मौजूद है. हालांकि, इंसानों के साथ अभी तक ऐसा संभव नहीं हो पाया था. कई रिसर्च दशकों से चल रहे हैं कि कैसे इंसान अपने कटे हुए अंगों को फिर से उगा सकते हैं. हालांकि, इससे इतर हमारे शरीर के भीतर मौजूद एक अंग में ये खूबी होती है कि वह अपने आप को फिर से पूरी तरह से बना सकता है. चलिए आपको उस अंग के बारे में बताते हैं.
कौन सा है वो अंग
हम जिस अंग की बात कर रहे हैं वो लीवर है. लीवर शरीर के भीतर मौजूद एक ऐसा अंग है जो अगर कट जाए तो वो अपने आप को फिर से बना लेता है. दरअसल, इस अंग की कोशिकाओं में रीजनरेशन के गुण होते हैं. इसे ऐसे समझिए कि लीवर की पुनर्निर्माण में लीवर की बची हुई हीपेटोसाइट्स कोशिकाएं काम करती हैं. ये कोशिकाएं विभाजित होकर बहुगुणित हो जाती हैं, जिससे खराब हो चुका ऊतक फिर से बन कर तैयार हो जाता है. इसी के कारण लीवर फिर से अपना पूरा स्वरूप हासिल कर लेता है. वहीं लीवर के काम की बात करें तो लीवर शरीर में मौजूद जहरीले तत्वों और गैसों को छानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके साथ ही ये शरीर के लिए पोषक तत्वों को भी इकट्ठा करता है.
फिर लीवर ट्रांसप्लांट क्यों होता है
अब सवाल उठता है कि अगर लीवर खुद को फिर से बना लेता है तो फिर जिनका लीवर खराब हो जाता है, उन्हें इसे ट्रांसप्लांट क्यों कराना पड़ता है. इस सवाल पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लीवर ट्रांसप्लांट की वजहें दूसरी होती हैं. उनका कहना है कि जब किसी मरीज का लीवर तो पूरा होता है लेकिन उस लीवर का कोई खास हिस्सा काम नहीं करता तब ऐसा करना पड़ता है. इसी तरह से कुछ लीवर की बीमारियां ऐसी होती हैं जो अगर आपको हो जाएं तो लीवर अपने आपको फिर से नहीं बना पाता. ऐसा सिरोसिस जैसी बीमारी में होता है. इस बीमारी के होने पर लीवर अपना पुनर्निर्माण नहीं कर पाता.
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