भारत के इतिहास में खासतौर पर मध्यकालीन समय में राजाओं और उनके दरबारों में जीवन जीने के तरीके पर बहुत चर्चा की जाती है. जहां मुस्लिम बादशाहों के हरम के बारे में कई इतिहासकारों ने लिखा है. हरम को किसी भी महल का खास ठिकाना माना जाता था, जहां सभी रानियां रहती थीं और उनके लिए हरम एक खास ठिकाना हुआ करता था. वहीं हिंदू राजाओं के बारे में भी कुछ इसी तरह की परंपराओं का पालन किया जाता था. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या हिंदू राजाओं के महलों में भी हरम हुआ करते थे? चलिए इसका जवाब जान लेते हैं.


क्या होता है हरम?


हरम शब्द का प्रयोग खासतौर पर मुस्लिम शासकों के लिए किया जाता है, जिनके पास कई पत्नियां और दासियां होती थीं. यह महिलाओं का एक अलग हिस्सा होता था, जहां वो राजा या सम्राट के संरक्षण में रहती थीं. हरम को खासतौर से शाही परिवार की महिलाएं, किन्नर, दासियां और अन्य महिलाएं आवास के रूप में इस्तेमाल करती थीं.


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हिंदू राजाओं के भी होते थे हरम?


मुस्लिम शासकों के हरम की तुलना में हिंदू राजाओं के लिए यह प्रथा थोड़ी अलग थी. हिंदू राजाओं के पास भी एक से ज्यादा पत्नियां होती थीं, कई महिलाओं को वो किसी राज्य से जीतकर लाते थे तो कई शादियां करके लाते थे. लेकिन हिंदू संस्कृति में महिलाएं अक्सर एक केंद्रीय स्थान पर नहीं रहती थीं जैसे मुस्लिम शासकों के हरम में. इसके बजाय रानियों और अन्य महिलाओं को अलग-अलग महलों में रखा जाता था.


हिंदू राजाओं की कई पत्नियां होती थीं, लेकिन इनकी संख्या आम तौर पर मुस्लिम शासकों से कम होती थी. हिन्दू राजा अपने परिवार की महिलाओं को अलग-अलग महलों या किलों में रखते थे. ये महल आम तौर पर किलों के भीतर होते थे, जिनमें खास महलों का निर्माण किया जाता था ताकि रानियां वहां सुरक्षित रह सकें.


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हिंदू राजाओं के महल और हरम के बीच अंतर


मुस्लिम शासकों के हरम और हिंदू राजाओं के महल के बीच एक खास अंतर था. मुस्लिम शासकों के हरम में महिलाओं का एक बड़ा समूह होता था, जहां वो खासतौर से राजा के 'समर्थक' होते थे और राजा के लिए उनका चयन कई बार काम भावना के आधार पर होता था, वहीं हिंदू राजाओं के महलों में रानियां समाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक दृष्टिकोण से ज्यादा सम्मानित होती थीं.


हिंदू राजाओं के महल में महिलाएं न केवल शाही परिवार की सदस्य होती थीं, बल्कि कुछ महिलाएं रानी के रूप में सत्ता में भी भाग लेती थीं. उदाहरण के लिए, रानी दुर्गावती और रानी लक्ष्मीबाई जैसी रानियां राजनीतिक मोर्चे पर भी सक्रिय थीं और अपनी शक्ति का प्रयोग करती थीं.


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