प्रदूषित हवा में रहने वाले जल्दी बूढ़े हो जातें हैं, इतने साल पहले ही आ जाता है बुढ़ापा- रिसर्च
प्रदूषित हवा निर्धारित रूप से सीधा फेफड़ों और सांस की नली पर असर डालती है. इससे अस्थमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है. इसी के साथ यह जल्दी बूढ़ा करने के लिए भी जिम्मेदार है.
Pollution: एक रिसर्च के अनुसार खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण के कारण लोग 10 साल जल्दी बूढ़े हो रहे हैं. इस रिसर्च में बताया गया है कि जिन लोगों को जहरीली हवा के संपर्क में आना पड़ता है, उन्हें कोविड-19 के मरीजों के साथ बराबर वैसा ही अनुभव होता है जैसे 10 साल बड़े व्यक्ति को होता है. प्रदूषित हवा के कारण सांस लेने वाले मरीजों की तुलना में फ्रेश एयर में सांस लेने वाले पेशेंट्स को 4 दिन अधिक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है.
शहरी इलाकों में रहने वाले हो जाते हैं जल्दी बूढ़े
इसका कारण है कि प्रदूषित हवा निर्धारित रूप से सीधा फेफड़ों और सांस की नली पर असर डालती है. इससे अस्थमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है. वातावरण और डिप्रेशन का असर भी व्यक्तियों की उम्र पर पड़ता है. रिसर्च के मुताबिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित शहरी इलाकों में रहने वाले और डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति जल्दी बूढ़े हो सकते हैं.
बीमार ज्यादा पड़ते हैं
विभिन्न अन्य रिसर्च में भी बताया गया है कि वायु प्रदूषण से व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. बेल्जियम में हुई एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि वायु प्रदूषण के कारण लोग 36% ज्यादा बीमार पड़ते हैं. डेनमार्क की रिसर्च में खुलासा हुआ कि वायु प्रदूषण के कारण कोविड-19 मरीजों की मौत का रिस्क 23% बढ़ गया है.
इस रिसर्च में 300 कोविड-19 मरीजों को शामिल किया गया और मई 2020 से मार्च 2021 तक उनके घरों में पाए गए प्रदूषक तत्वों का डेटा कलेक्ट किया गया. इसके परिणामस्वरूप, प्रदूषित हवा के संपर्क में आने वाले पॉल्यूशन के ज्यादा लेवल वाले लोगों को 4 दिन अधिक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है.
शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं हानिकारक तत्व
इस रिसर्च में वायु प्रदूषण से उत्पन्न बारीक पार्टिकल्स, जिन्हें PM2.5 पार्टिकल कहा जाता है, फेफड़ों तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं. इसके अलावा नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड और ओजोन भी शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. इन सभी चीजों का शुरुआती असर सांस की नली पर पड़ता है और फेफड़ों के काम करने की क्षमता को घटा देता है, जिससे अस्थमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है. वातावरण और डिप्रेशन भी व्यक्तियों की उम्र पर प्रभाव डालते हैं.
शोध अभी जारी है
इस रिसर्च में डीएनए के जरिए एपिजेनेटिक कोरिलेशन की जांच की गई, जिससे उम्र बढ़ने के साथ क्रोनोलॉजिकल ऐज और बायोलॉजिकल ऐज के बीच अंतर का पता लगाने में मदद मिली. इससे यह पता चला कि डिप्रेशन और आस-पास की लोगों के न होने के कारण एपिजेनेटिक ऐज में बदलाव होता है. यह डिप्रेशन के इमोशनल डिस्ट्रेस से भी जुड़ा हो सकता है, जिससे शारीरिक प्रणालियों का विनियमन प्रभावित होता है. इस रिसर्च के अनुसार, एपिजेनेटिक ऐज के परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए हम जल्द ही यह जान पाएंगे कि क्या यह स्थायी या परिवर्तनशील होता है.
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