महाकुंभ में कैसे आते हैं अघोरी, कहां करते हैं साधना? क्या है अघोरियों का इतिहास
ईश्वर की साधना की रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ. इनकी पूरी दुनिया रहस्यों से भरी होती है. उनकी अपनी मान्यताएं हैं. अपरंपरागत पूजा अनुष्ठान हैं. वे श्मशाम में वास करना पसंद करते हैं.
अघोरी...साधुओं का एक ऐसा समुदाय जो हमेशा से लोगों के बीच एक जिज्ञासा का केंद्र रहा है. इनकी दुनिया रहस्य से भरी होती है. कहते हैं कि अघोरी श्मशाम में रहते हैं और वहीं रहकर अपनी साधना पूरी करते हैं. यूं तो आमतौर पर अघोरी नहीं दिखते, लेकिन महाकुंभ आ रहा है. ऐसे में अघोरियों की चर्चा होना स्वभाविक है. दरअसल, महाकुंभ में नागा साधुओं के बाद सबसे ज्यादा चर्चा आघोरियों की होती है.
ईश्वर की साधना की रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ. इनकी पूरी दुनिया रहस्यों से भरी होती है. उनकी अपनी मान्यताएं हैं. अपरंपरागत पूजा अनुष्ठान हैं. वे श्मशाम में वास करना पसंद करते हैं. चिता की राख शरीर पर लपेटते हैं और मानव चिताओं के बचे मांस को ही खाते हैं. यहां तक कि मानव खोपड़ी को भी वे एक बर्तन के रूप में इस्तेमाल करते हैं. आइए जानते हैं अघोरियों के बारे में...
भगवान शिव के उपासक
अघोरियों को भगवान शिव का उपासक माना जाता है. इस पंथ के प्रणेता भी भोले शंकर ही हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था और शिव के अवतार भगवान दत्तात्रेय को अघोर शास्त्र का गुरू माना जाता है. अघोर संप्रदाय में बाबा कीनाराम की काफी मान्यता है और उनकी पूजा की जाती है. कहा जाता है कि बाबा कीनाराम का जन्म साल 1601 में हुआ था.
श्मशान में करते हैं साधना
अघोरियों की साधना अपरंपरागत होती है. आमतौर पर हम सभी साफ-सुधरी जगह पर पूजा-अनुष्ठान करते हैं, वहीं अघोरी अपनी साधना के लिए श्मशान घााटों को चुनते हैं. कहा जाता है कि अघोरियों की मान्यता है कि सबकुछ श्मशान से जुड़ा हुआ है और यही से जीवन की उत्पत्ति होती है. अघोरपंथ में तीन तरीके की अराधना होती हैं, जिनमें हैं- श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना. कहा जाता है कि जब अघोरी शव के ऊपर पैर रखकर साधना करते हैं तो उसे शिव और शव साधना कहा जाता है, ऐसी साधना में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है. इसके अलावा श्मशान साधना होती है, जिसमें परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है.
विचित्र होता है अघोरियों का व्यवहार
अघोरी साधुओं का व्यवहार काफी विचित्र होता है. वे किसी से बात करना पसंद नहीं करते और न ही अपनी दुनिया के बारे में ज्यादा कुछ बताते हैं. अघोरियों को तंत्र विद्या का जानकार माना जाता हैं. कहते हैं कि अघोरी समाज के भले के लिए ये विद्याएं सीखते हैं. ये व्यवहार से काफी रूखे होते हैं. कहा जाता है कि अघोरी बनने की पहली शर्त होती है अपने मन से घृणा को निकाल देना. वे खुद को इस तरह ढालते हैं कि जिन चीजों से समाज घृणा करता है, उसे अघोरी अपनाते हैं. आम तौर पर लोग श्मशान, शव, कफन से घृणा करते हें, लेकिन अघोरी इन चीजों के साथ रहते हैं. माना जाता है कि महकुंभ में आने के बाद अघोरी फिर से श्मशाम में चले जाते हैं.
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