महाकुंभ का आगाज होने ही वाला है. 13 जनवरी से प्रयागराज में संतों और श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ेगा. कड़ाके की ठंड के बीच शाही स्नान होगा और हर बार की तरह इस बार भी महाकुंभ के केंद्र में होंगे नागा साधु. दरअसल, नागा साधुओं की दुनिया भी रहस्यों से भरी होती है. ये सिर्फ महाकुंभ में दिखाई पड़ते हैं और फिर तपस्या में लीन हो जाते हैं. 


कहते हैं कि महाकुंभ का आगाज नागा साधुओं के शाही स्नान से ही होता है. ढोल-नगाड़ों के साथ सभी अखाड़ों के नागा साधु एक साथ आते हैं और संगम तट पर डुबकी लगाते हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि इस कड़ाके की ठंड में जहां हड्डियां तक कांप उठती हैं और हम हीटर से लेकर न जाने कितने इंतजाम करते हैं, उसमें भी नागा साधु निर्वस्त्र यानी नंगे बदन ही रहते हैं और साधना करते हैं. इन्हें ठंड क्यों नहीं लगती? इसके पीछे का विज्ञान क्या है? आइए जानते हैं...


कठोर साधना से मन पर नियंत्रण


कहते हैं कि कठोर साधना और तपस्या से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. साधना से मन पर नियंत्रण हासिल होता है, जो हमें शरीरिक सुख और दुख सहने के लिए तैयार करता है. नागा साधु इसी तपस्या और साधना के साथ नियमित अभ्यास करते हैं और मन और शरीर पर नियंत्रण पा लेते हैं. इससे उन्हें सर्दी और गर्मी का एहसास ज्यादा नहीं होता. 


नियमित योग


योग किसी भी तपस्वी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है. योग के जरिए वे अपने शरीर की ऊर्जा को बढ़ाते हैं और अपने शरीर को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते हैं. नागा साधु भी योग विद्या के नियमित अभ्यास से ऐसा कर पाते हैं. 


शरीर पर भस्म


आपने नाग साधुओं को शरीर पर भस्म लगाते हुए देखा होगा. शास्त्रों के अनुसार, भस्म को पवित्र माना जाता है. कहा जाता है कि भस्म ही अंतिम सत्य है और शरीर को एक दिन भस्म ही बन जाना है. नागा साधुओं का मानना है कि भस्म उन्हें नकारात्मक ऊर्ज से बचाती है. इससे इतर विज्ञान का मानना है कि शरीर पर राख यानी भस्म मलने से ठंड नहीं लगती. यहां तक कि सर्दी और गर्मी का एहसास भी नहीं होता. दरअसल, यह एक तरह से इंसुलेटर का काम करती है.