भारत में जब भी वीर योद्धाओं की बात होगी, तो उसमें महाराणा प्रताप का जिक्र जरूर होगा. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था. राजपूत राजघराने में जन्म लेने वाले महाराणा प्रताप प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे. वे एक महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष थे. लेकिन आज हम उनके बड़े बेटे अमर सिंह के बारे में आपको बताएंगे, जिन्होंने मुगलों से लड़ाई की थी.
अमर सिंह ने मुगलों से क्यों की थी लड़ाई
इतिहासकारों के मुताबिक साल 1597 में महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी. लेकिन चित्तौड़ का किला वापस पाने की उनकी इच्छा अधूरी रह गई थी. महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद ये जिम्मेदारी उनके बड़े बेटे अमर सिंह पर आ गई थी. लेकिन उधर अकबर मेवाड़ पर हमला करके उसको जीतने की रणनीति तैयार करने लगा था. राम वल्लभ सोमानी की किताब हिस्ट्री ऑफ मेवाड़ के मुताबिक साल 1599 में अकबर के बेटे शहजादे सलीम ने मेवाड़ की तरफ हमला करना शुरू कर दिया था. इस लड़ाई में शहजादे सलीम ने ज्यादा मुगल सेना होने के कारण कई राजपूत इलाकों को अपने कब्जे में कर लिया था. हालांकि अमर सिंह ने युद्ध के दौरान धैर्य से काम लेते हुए फिर हारे हुए क्षेत्रों को दोबारा जीता लिया था.
मुगलों के साथ संधि
जानकारी के मुताबिक साल 1603 में सलीम पहले से भी ज्यादा बड़ी मुगल सेना लेकर मेवाड़ पर हमला करने के लिए निकल पड़ा था. लेकिन सलीम ने फिर मुगल सेना को फतेहपुर में रोक दिया था.इसके कुछ समय के बाद सलीम ने अमर सिंह के पास संधि का प्रस्ताव भेजा, जिसे अमर सिंह तुरंत ठुकरा दिया था. इसके बाद सलीम ने खुद युद्ध करने का फैसला किया था और एक बड़ी फौज लेकर मेवाड़ की तरफ बढ़ने लगा. उधर अमर सिंह ने ये सब देखते हुए युद्ध नहीं करने का फैसला किया और संधि के लिए तैयार हो गए थे. हालांकि इन संधि में शर्त भी रखी गई थी. जिसके मुताबिक महाराणा कभी मुगल दरबार में पेश नहीं होंगे, इसके अलावा मुगल और मेवाड़ के बीच कोई शादी नहीं होगी. वहीं महाराणा को चित्तौड़ मिलेगा, लेकिन मुगलों की तरफ से कभी भी दुर्ग की मरम्मत नहीं की जाएगी. वहीं संधि के पांच साल बाद 26 जनवरी 1620 के दिन महाराणा अमर सिंह की मौत हो गई थी. वहीं सलीम ने महाराणा अमर सिंह की वीरता को देखते हुए आगरा के किले में उनकी मूर्तियां लगवा दी थी.
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