उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में सर्राफा व्यापारी के साथ हुए लूट कांड में मंगेश यादव एनकाउंटर को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, जहां ये कह रहे हैं कि प्रशासन जाति देख कर एक्शन ले रहा है. वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह रहे हैं कि भाजपा शासित राज्यों में ‘कानून और संविधान’ की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.


इसके अलावा सोशल मीडिया पर कई लोग पुलिस के एनकाउंटर करने के तरीके पर भी सवाल उठा रहे हैं. चलिए आज आपको बताते हैं कि पुलिस किन हालातों में एनकाउंटर करती है औ किन स्थितियों में पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर को फर्जी करार दे दिया जाता है.


पुलिस कब कर सकती है एनकाउंटर


भारतीय संविधान में सीधे तौर पर एनकाउंटर का कोई उल्लेख नहीं मिलका. लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में आत्मरक्षा (Self-Defense) या अत्यावश्यकता (Necessity) की स्थिति में पुलिस अपराधी का एनकाउंटर कर सकती है. जैसे- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96-106 आत्मरक्षा का अधिकार देती है. इसके अनुसार, यदि पुलिसकर्मी या कोई व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिए बल का प्रयोग करता है, तो इसे आत्मरक्षा माना जाएगा.


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इसे ऐसे समझिए कि अगर कोई अपराधी या आतंकवादी पुलिस पर या नागरिकों पर जानलेवा हमला कर रहा है, तो पुलिस के पास आत्मरक्षा में गोली चलाने का अधिकार है. हालांकि, गोली चलाते समय भी पुलिस को इस बात का ख्याल रखना होता है कि पहले अपराधी के पैर में गोली मारी जाए, जिससे वह घायल हो उसकी मृत्यु ना हो.


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किन स्थितियों में एनकाउंटर को फर्जी माना जाता है


दरअसल, एनकाउंटर को आमतौर पर अपराधियों, आतंकवादियों और समाज के लिए खतरा बने लोगों को रोकने का एक जरूरी उपाय माना जाता है. हालांकि, जब पुलिस द्वारा की गई मुठभेड़ संदिग्ध परिस्थितियों में होती है और कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है, तब इसे "फर्जी एनकाउंटर" करार दे दिया जाता है. लेकिन पुलिस का एनकाउंटर फर्जी है या नहीं, जांच के बाद इसका फैसला अदालत या फिर जांच कर रही एजेंसियां ही करती हैं.


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