Manipur Violence: नॉर्थ-ईस्ट में स्थित राज्य मणिपुर पिछले कई महीनों से हिंसा की आग में झुलस रहा है. दो समुदायों के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया है कि ये खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. कुछ महीने पहले हुई हिंसा के बाद अब एक बार फिर मणिपुर के कुछ इलाकों में बवाल शुरू हुआ है, कई नेताओं के घरों पर हमले हुए हैं और आगजनी भी हो रही है. इसी बीच हम आपको आज मणिपुर का पूरा इतिहास, यहां रहने वाली जनजातियों और राजनीतिक पार्टियों के बारे में बताएंगे. इस एक आर्टिकल में आप पूरे मणिपुर को अच्छे से समझ सकते हैं.
मणिपुर का इतिहास
मणिपुर देश के उन राज्यों में शामिल है, जो बेहद खूबसूरत हैं. ये राज्य पहाड़ी घाटियों के बीच बसा हुआ है. मणिपुर की कुल आबादी करीब 35 लाख है. अब सबसे पहले ये जान लेते हैं कि मणिपुर का इतिहास क्या रहा है. मणिपुर का पुराना नाम कंगलाईपथ था, जिसके बाद यहां के मैतई राजा ने इसे बदलकर राज्य का नाम मणिपुर रख दिया. मणिपुर एक कटोरे की तरह है, यानी चारों तरफ पहाड़ी हैं और बीच में इंफाल वैली है. चारों तरफ फैले पहाड़ों में ट्राइब्स रहते हैं. यानी अलग-अलग जनजाति के लोग बसते हैं, वहीं नीचे वैली में दूसरे समुदाय मैतई के लोग रहते हैं. यहां का तीसरा समुदाय नगा है, जो पहाड़ी इलाकों में ही बसते हैं.
मैतई राजा का दौर
अब आपको उस कहानी के बारे में भी बताना जरूरी है जब मणिपुर का अस्तित्व ही खतरे में आ गया था. 1819 में बर्मा ने मणिपुर पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद मैतई राजा ने ब्रिटिश शासन से मदद की गुहार लगाई. ब्रिटिशर्स 1826 में बर्मी किंगडम को हरा देते हैं और फिर मणिपुर एक प्रोटेक्टोरेट स्टेट बन जाता है. यानी इसकी कमान ब्रिटिश शासन के पास होती है. अंग्रेजों ने यहां पर शासन के दौरान डिवाइड एंड रूल वाला फॉर्मूला इस्तेमाल किया.
अंग्रेजों ने चारों तरफ पहाड़ियों पर कुकी समुदाय को बसाने का काम किया. वहीं मैतई पहले से वैली में बसे हुए थे. अंग्रेजों ने सभी को ये मैसेज दिया कि दोनों ही समुदाय पूरी तरह से अलग हैं. इसीलिए मैतई हमेशा वैली में रहेंगे और कुकी पहाड़ियों में रहेंगे. कहा जाता है कि इसी दौर से मणिपुर में विवाद के बीज बो दिए गए थे.
जब भारत में शामिल हुआ मणिपुर
आजादी के बाद 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बन गया था, इससे पहले ही 1947 में मणिपुर ने खुद को एक डेमोक्रेटिक स्टेट घोषित कर दिया था और खुद का संविधान भी बना लिया था. हालांकि भारत में शामिल होने के बाद वो एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया. इसके बाद 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला.
क्या है पूरे विवाद की जड़?
अब मणिपुर हिंसा की बात हो रही है तो इस पूरे विवाद की जड़ तक जाना भी जरूरी है. दरअसल ये पूरा विवाद जमीन और मणिपुरी कल्चर से जुड़ा हुआ है. शेड्यूल ट्राइब का स्टेटस छिनने से मैतई समुदाय के लोग वैली के आसपास जमीन नहीं ले सकते हैं. ऐसे में उन्हें ये डर सताने लगा कि एक दिन वो पूरी तरह से छोटी सी जगह में सिमट जाएंगे. इसके बाद 2001 से मैतई लोग शेड्यूल ट्राइब स्टेटस की मांग करने लगे. जिससे वो भी कहीं भी जमीन ले सकते हैं और पूरे राज्य में अपना अस्तित्व कायम रख सकते हैं.
इनर लाइन परमिट की भी मांग
मैतई समुदाय इनर लाइन परमिट की भी लगातार मांग करता आया है. जिससे ये पता चल पाए कि कौन मणिपुरी है और कौन बाहर से आकर यहां बस रहा है. उनका कहना है कि दूसरे समुदाय के लोग पूरे इलाके पर कब्जा कर रहे हैं और नए गांव बसाए जा रहे हैं. इसके लिए कटऑफ डेट 1951 होनी चाहिए, यानी 1951 के बाद से मणिपुर में रहने वाले लोगो को मणिपुरी नहीं कहा जाएगा. मैतई समुदाय का कहना है कि एनआरसी 1951 से ही लागू होनी चाहिए.
इसी इनर लाइन परमिट को लेकर 2015 में एक बिल लाया जाता है, जैसे ही ये बिल विधानसभा में पेश होता है तो कुकी बहुल इलाके चूरा चांदपुर में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं. कुकी लोगों का कहना है कि मैतई हमेशा हम लोगों को बाहरी समझते हैं. मैतई उन्हें राज्य से बाहर करना चाहते हैं. इस बात से कुकी समुदाय अपनी स्टेहुड की बात को भी मजबूती देता रहा है. यही वजह है कि कुकी लगातार खुद को 6th शेड्यूल में डालने की मांग कर रहे हैं.
इन जगहों से लगती है मणिपुर की सीमा
मणिपुर की सीमाओं की अगर बात करें तो एक तरफ इसके नागालैंड है, वहीं दूसरी तरफ म्यांमार है. वहीं वेस्ट में मेघालय और असम जैसे राज्य भी हैं. इसके साउथ में मिजोरम से भी कनेक्टिविटी है. म्यांमार से सीमा लगने को भी मणिपुर में हिंसा और हथियारों के चलन की एक वजह माना जाता है.
ऐसा है खानपान
अब मणिपुर के लोगों के खानपान की बात करें तो यहां के लोग ज्यादा मसालेदार खाना नहीं खाते हैं. अदरक, लहसुन और मिर्च से ही यहां तमाम तरह के खाने में स्वाद डाला जाता है. यहां लोग एरोम्बा यानी उबली हुई मछिलियां खाना खूब पसंद करते हैं. वहीं शिंगजू शाक, मोरोकक मेटपा, ईरोम्बा, थाबाल और पखावज, मछली संबल जैसी डिश खूब मिलती हैं.
राजनीतिक हिस्सेदारी
मणिपुर में राजनीति ज्यादातर इंफाल वैली में रहने वाले मैतई समुदाय के ही इर्द-गिर्द घूमती है. कुल 60 विधायकों में से करीब 40 मैतई समुदाय से आते हैं, जबकि बाकी 20 कुकी और नगा समुदाय के हैं. यानी प्रतिनिधित्व मैतई लोगों के हाथों में है. मुख्यमंत्री भी हर बार कोई मैतई ही बनता है. यही वजह है कि कुकी समुदाय खुद की स्वायित्वता की मांग कर रहा है.
ये भी पढ़ें - आर्मी, पुलिस या फिर पैरा मिलिट्री फोर्स- कहां मिलती है सबसे ज्यादा सैलरी