जब भी हिंदू रीति-रिवाजों के जरिए शादी होती है तो कई परंपराओं को फॉलो किया जाता है. इन परंपराओं में एक 'वरमाला' का कार्यक्रम होता है. 'वरमाला' के इस कार्यक्रम में दूल्हा-दुल्हन आपस में माला पहनाते हैं और इस माला को वरमाला कहते हैं. माला चाहे लड़का पहनाओ या फिर लड़की इसे वरमाला ही कहा जाता है. ऐसे में कभी आपने सोचा है कि आखिर इस माला को वरमाला ही क्यों कहा जाता है, इसे वधुमाला क्यों नहीं कहा जाता. क्या आप भी जानते हैं इस सवाल का जवाब कि आखिर ऐसा क्यों होता है... 


क्यों पहनाई जाती है वरमाला?


दरअसल, वरमाला पहनाने के कॉन्सेप्ट स्वीकृति से है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक कपल एक-दूसरे को माला पहना देते हैं तो इसका मतलब है कि दूल्हा-दुल्हन ने एक दूसरे को स्वीकार कर लिया है. एक दूसरे को वरमाला पहनाने का मतलब स्वीकृति जाहिर करना है. जब कभी स्वंयवर भी होता था लड़की अपना वर जब किसी को चुन लेती थीं तो उसे माला पहना देती थीं, जिसका मतलब है कि उन्होंने उसे चुन लिया है. 


क्यों कहते हैं वरमाला?


दरअसल, वरमाला का कनेक्शन लड़की की ओर से लड़का चुनने से है. जैसे रामायण में सीता ने भगवान राम को अपना वर चुना था तो उन्होंने एक माला पहनाई थी, उससे इस माला को वरमाला कहा जाता है. पहले लड़कियां अपने वर का चयन करने के लिए माला का इस्तेमाल करती थी और इसे वरमाला नाम मिला. पौराणिक कथाओं के जानकार देवदत्त पटनायक भी अपने कई वीडियो में बताते हैं कि जब लड़की अपने लिए वर चुनती थी तो माला पहनाती थी तो उसे वरमाला कहा गया है. हालांकि, अब लड़के की ओर से भी जो माला पहनाई जाती है, उस वरमाला कहते हैं. 


ऐसे में वरमाला नाम लड़की के वर चुनने की कहानियों से मिला है, हालांकि अब कुछ लोग इसे जयमाला भी कहते हैं. लेकिन, वरमाला की कहानी स्वयंवर में चुने गए पतियों से जुड़ी है. अब इसे काफी बड़े इवेंट के रुप में मनाया जाता है और इसे एक दूसरे की स्वीकृति माना जाता है. 


देवदत्त अपने एक लेख में यह भी बताते हैं कि हिंदू धर्म में शादी के वक्त एक रस्म होती है, जिसे पाणिग्रहण कहा जाता है. पाणि का मतलब हाथ से है. इसमें एक लड़का लड़का का हाथ असेप्ट करता है और उस दौरान लड़की का पिता या कोई और उस वक्त लड़की उन्हें सौंपता है, जिसे कन्यादान कहा जाता है. 


ये भी पढ़ें- अगर एक PNR में 4 लोगों की टिकट है और एक कंफर्म ना हो तो वो सफर कर सकता है?