विज्ञान ने बेहिसाब तरक्की कर ली है. लेकिन इसके बाद भी कुछ चीजें ऐसी हैं जिन पर विज्ञान भी हार जाता है. ऐसी ही एक चीज है इंसान की चेतना. मां के गर्भ में एक शिशु के भीतर चेतना कहां से आती है और मृत्यु के बाद कहां चली जाती है, इसके बारे में किसी को अब तक कुछ नहीं पता. हालांकि, हाल ही में जीवों की चेतना को लेकर एक वैज्ञानिक द्वारा किए गए दावों ने इस पर चर्चा तेज कर दी है. चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला.


क्या है पूरा मामला


अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ नेवादा में फिजिक्स के प्रोफेसर हैं माइकल प्रवीका, उन्होंने दावा किया है कि जीवों के भीतर चेतना सिर्फ दिमाग की गतिविधियों से नहीं आता, बल्कि इसके लिए ब्रह्मांड के कई आयाम भी जिम्मेदार हो सकते हैं. माइकल प्रवीका दावा करते हैं कि जब इंसान की चेतना चरम पर होती है, यानी जब वो कोई आर्ट बना रहा होता है या साइंस की प्रैक्टिस कर रहा होता है या फिर सपने देख रहा होता है तो उसकी चेतना फिजिकल डाइमेंशन को पार कर ब्रह्मांड के दूसरे आयामों से भी जुड़ जाती है.


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प्रवीका का सिद्धांत क्या कहता है


माइकल प्रवीका का सिद्धांत मूल रूप से हाइपरडायमेंशनलिटी पर आधारित है. आसान भाषा में कहें तो प्रवीका का सिद्धांत यह कहता है कि ब्रह्मांड में हमारे द्वारा अनुभव किए जाने वाले चार आयामों से अधिक आयाम हैं. यानी ब्रह्मांड में ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई और समय से भी ज्यादा आयाम हैं. वह एक दो-आयामी प्राणी से जुड़े एक काल्पनिक परिदृश्य का उपयोग करके इस अवधारणा को समझाते हैं.


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प्रवीका का सिद्धांत कहता ​​है कि जिस तरह दो-आयामी प्राणी तीन-आयामी आकृतियों को नहीं देख सकते, उसी तरह हम अपने आस-पास मौजूद हाइपरडायमेंशनलिटी को पहचानने में असमर्थ हो सकते हैं. उनका तर्क है कि बढ़ी हुई जागरूकता के क्षण हमारी चेतना को इन छिपे हुए आयामों के साथ तालमेल बिठाने की अनुमति देते हैं, जिससे इंसान के भीतर प्रेरणा शिखर पर होती है.


दूसरे वैज्ञानिक इस पर क्या कहते हैं


माइकल प्रवीका के सिद्धांत ने वैज्ञानिक समुदाय के भीतर एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है. फ़ोर्डहैम यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर स्टीफ़न होलर सहित कुछ वैज्ञानिक इस सिद्धांत पर संदेह व्यक्त करते हुए कहते हैं कि प्रवीका का सिद्धांत साइंस फिक्शन की सीमा पर आधारित है. वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि हम गणितीय रूप से हाइपर डायमेंशन में हेरफेर कर सकते हैं, लेकिन यह उनके अस्तित्व या उनके साथ किसी तरह के जुड़ाव की हमारी क्षमता को साबित नहीं करता है.


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