उत्तर भारत प्रचंड गर्मी से परेशान है. यहां रहने वाले लोग अब बादलों की ओर आस लगाए बैठे हैं कि जल्द से जल्द बारीश की बूंदें जमीन पर पड़ें और धरती का ताप कम हो. अमूमन 20 से 25 जून तक मानसून उत्तर भारत में दस्तक दे देता है और 15 जुलाई आते-आते यह पूरे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लेता है. चलिए आज आपको बताते हैं कि आखिर मानसून आता कैसे है.
पहले समझिए मानसून शब्द का मतलब
अरबी में एक शब्द है मावसिम यानी ऋतु या सीजन.पुर्तगाली में इसे मान्सैओ कहते हैं. जबकि शुरुआती आधुनिक डच शब्द मॉनसन भी इसी से मिलता जुलता है. इन्हीं सब का मेल आज मानसून शब्द बन गया है. सरल शब्दों में मानसून को आप रिवर्सल ऑफ विंड कह सकते हैं. अब इसे साफ शब्दों में समझें तो एक दिशा से कम से कम 120 डिग्री या पूरी तरह से 180 डिग्री तक हवाओं का पलट जाना.
मानसून बनता कैसे है
मानसून तब बनता है जब गर्मी के मौसम में हिंद महासागर में सूर्य विषुवत रेखा यानी Equator के ठीक ऊपर होता है. इस प्रक्रिया के दौरान समुद्र का तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है और वहीं धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंच जाता है. जैसे ही ये स्थिति बनती है हिंद महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय हो जाती हैं और फिर ये हवाएं आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा पार कर के एशिया की ओर बढ़ने लगती हैं. इसी दौरान समुद्र के ऊपर बारिश वाले बादलों के बनने की भी प्रक्रिया तेज हो जाती है. बाद में ये हवाएं और बारिश वाले बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं.
भारत में कैसे आता है मानसून
जब तेज हवाएं और बारिश वाले बादल बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचते हैं तो ये दो हिस्सों में बंट जाते हैं. एक हिस्सा अरब सागर की ओर से मुंबई, गुजरात राजस्थान होते हुए आगे बढ़ता है तो दूसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगा के तलहटी क्षेत्रों की ओर मुड़ जाता है. इस तरह मानसून भारत को दो हिस्सों में कवर करता है.
ये भी पढ़ें: दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बने ओम बिरला, कार्यकाल खत्म होने के बाद क्या डबल पेंशन मिलेगी?