भारतीय सेना का विदेशी धरती पर किया गया सबसे खतरनाक ऑपरेशन, जिसने दुनिया भर में उसकी क्षमताओं और शक्ति का लोहा मनवाया, वह था "ऑपरेशन कैक्टस"... यह ऑपरेशन 1988 में मालदीव में हुआ था और इसे भारतीय सेना की रणनीतिक क्षमता और तत्परता का एक प्रमुख उदाहरण भी माना जाता है इस ऑपरेशन की सफलता ने भारतीय सेना की अंतरराष्ट्रीय छवि को सुदृढ़ किया और पूरी दुनिया पर उसका असर हुआ.


भारत ने मालदीव को कराया था मुक्त 


3 नवंबर 1988 को, श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के हथियारबंद उग्रवादियों ने मालदीव की राजधानी माले पर हमला कर दिया. उन्होंने सरकारी इमारतों, एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलीविजन स्टेशन पर कब्जा कर लिया. जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति मॉमून अब्दुल गय्यूम ने भारत से मदद की अपील की.


दिल्ली से करीब 3 हजार किलोमीटर दूर बसे एक देश से कॉल आई. कॉल देश की राजधानी से थी और भारत से मदद मांगने के लिए लगाई गई थी. बताया गया कि प्रेसिडेंट के खिलाफ विद्रोह हो गया है, उन्हें बचा लीजिए. उस दिन प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी कोलकाता में थे. उन्हें खबर मिली तो दिल्ली पहुंचे. भारत सरकार ने मदद के लिए आर्मी भेजने का फैसला लिया और शुरू हुआ 'ऑपरेशन कैक्टस...'  


आगरा कैंट से इंडियन आर्मी के पैराशूट ब्रिगेड के 300 जवानों को रवाना किया गया. एयरफोर्स के मिराज प्लेन उस देश की राजधानी के ऊपर चक्कर लगा रहे थे. इंडियन नेवी के INS गोदावरी, बेतवा भी इंडियन ओशन में उतार दिए गए और उस देश का नेबर कंट्री के साथ कॉन्टैक्ट पूरी तरह से काट दिया गया. कुछ ही समय में इंडियन सोल्जर्स रिबेल मिलिटेंट्स को मार गिराते हैं और उन सभी गवर्नमेंट बिल्डिंग को अपने कब्जे में ले लेते हैं, जिन पर आतंकियों ने कब्जा कर रखा था. इंडियन आर्मी, उस देश के प्रेसिडेंट की कुर्सी और जान दोनों बचा लेती है. इस तरह से ऑपरेशन कैक्टस खत्म होता है. लेकिन इसके बाद भी Political stability बनाए रखने के लिए 100 इंडियन सोल्जर्स को अगले एक साल तक वहीं डिप्लाय किया जाता है. 
 
एयरपोर्ट को  लिया था सबसे पहले कब्जे में 


भारतीय सेना ने सबसे पहले माले के एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लिया और राष्ट्रपति गय्यूम को सुरक्षित किया, फिर भारतीय नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा ने माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों की सप्लाई लाइन काट दी. कुछ ही घंटों के भीतर भारतीय सेना ने माले से उग्रवादियों को खदेड़ना शुरू कर दिया. ऑपरेशन कैक्टस को दुनिया के सबसे सफल कमांडो ऑपरेशनों में गिना जाता है. संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने भारतीय कार्रवाई की तारीफ की. इस ऑपरेशन ने भारतीय सेना की त्वरित प्रतिक्रिया और कुशलता को साबित किया. यह ऑपरेशन भारतीय सेना का पहला विदेशी सैन्य ऑपरेशन था. 


इंडियन टूरिस्ट की पहली पसंद मालदीव


मालदीव नाम का मतलब द्वीपों की माला से है. मतलब वो देश जो कई द्वीपों (आइलैंड्स) का ग्रुप है. अगर हम मैप में देखें तो इंडिया और श्रीलंका के साउथ-वेस्ट में इंडियन ओशन में हमें कुछ छोटे-छोटे आइलैंड्स दिखते हैं. यही मालदीव है. इंडियन ओशन में बसा ये छोटा सा देश, 12 सौ आइलैंड्स की एक चेन है. इन 1200  आइलैंड्स में से केवल 200 ही inhabitable हैं. मालदीव की टोटल पॉपुलेशन 5 लाख 22 हजार है. यहां रहने वाले 98 परसेंट लोग मुस्लिम हैं. मालदीव की आधे से अधिक पॉपुलेशन कैपिटल सिटी माले में रहती है.


इंडिया और श्रीलंका नेबर कंट्री हैं, लेकिन मालदीव की जमीन किसी से भी नहीं लगती. जैसा कि आप मैप में देख चुके हैं मालदीव चारों तरफ समुद्र से ही घिरा हुआ है. मालदीव इंडियन टूरिस्ट्स के फेवरेट डेस्टिनेशन्स में से एक है और इंडिया के साथ काफी पुराने कल्चरल रिलेशन रहे हैं. इंडिया और श्रीलंका की तरह मालदीव भी ब्रिटेन की कॉलोनी हुआ करता था. 1965 में मालदीव को आजादी मिली. 3 साल बाद रेफरेंडम हुआ और सुल्तान का रूल खत्म कर प्रेसिडेंट का पोस्ट क्रिएट किया गया. पहले प्रेसिडेंट बने इब्राहिम नासिर और अगले 10 साल वो इस पोस्ट पर बने रहे. 


1978 में नासिर की जगह मौमून अब्दुल गयूम मालदीव के प्रेसिडेंट बने और वे 1978 से 2008 तक मालदीव के प्रेसिडेंट की कुर्सी पर बने रहे. गयूम के 30 साल के टेन्योर में इंडिया और मालदीव के रिलेशन्स काफी अच्छे रहे. स्टोरी के शुरुआत में हमने आपको ऑपरेशन कैक्टस की जो कहानी सुनाई वो अब्दुल गयूम के ही टेन्योर की है. इंडिया ने अपने सोल्जर्स भेजकर अब्दुल गयूम को बचाया था. तो जब तक गयूम रहे तब तक मालदीव में इंडिया का अच्छा खासा प्रभाव रहा.


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