Serial Killers of the World: लोग उसे अपनी जिंदगी की डोर भरोसे के साथ सौंपते थे और वह उनके मौत के रास्ते पर धकेल देता था. बात हो रही है उस हैवान की, जो पेशे से तो डॉक्टर था, लेकिन अपनी हैवानियत के चलते वह डॉक्टर डेथ के नाम से लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर छा गया. 'जब इंसान बना एनिमल' की तीसरी कड़ी में हम आपको ऐसे सीरियल किलर से रूबरू करा रहे हैं, जिसकी दरिंदगी की दास्तां सुनकर आज भी लोग कांप जाते हैं. 


लंदन में प्रैक्टिस करता था डॉक्टर डेथ
डॉक्टर डेथ का असली नाम हेरॉल्ड फ्रेडरिक शिपमैन था, जिसे लोग फ्रेड शिपमैन के नाम से भी जानते थे. वह पेशे से डॉक्टर ही था और उसने 1972 से 1998 तक लंदन में ही प्रैक्टिस की थी. हालांकि, उसने डॉक्टरी के पेशे में ऐसी वहशत दिखाई कि उसे मॉडर्न हिस्ट्री के सबसे खूंखार सीरियल किलर में शुमार कर लिया गया. 


ऐसा रहा शिपमैन का बचपन
हेरॉल्ड फ्रेडरिक शिपमैन का जन्म 14 जनवरी 1946 के दिन नॉटिंघम में हुआ था. वह अपने माता-पिता की तीन संतानों में दूसरे नंबर का बच्चा था. उसके पिता का नाम भी हेरॉल्ड फ्रेडरिक शिपमैन था, जो लॉरी ड्राइवर थे. वहीं, मां वेरा भी जॉब करती थीं. जब फ्रेड शिपमैन 11 साल का था, उस वक्त उसके पिता का निधन हो गया. 


कम उम्र में ही मां भी छोड़ गई साथ
शिपमैन अपनी मां के बेहद करीब था. जब उनकी मौत हुई, तब शिपमैन महज 17 साल का था. हुआ यूं कि मां वेरा को लंग्स कैंसर था, जिसके चलते उनका आखिरी वक्त काफी दर्द में बीता. 


मां के सपने ने बनाया डॉक्टर
जानकार बताते हैं कि शिपमैन की मां का सपना अपने बेटे को डॉक्टर बनाना था. मां की मौत से शिपमैन बुरी तरह टूट गया था, लेकिन उसने उनके सपने को बिखरने नहीं दिया और 1970 में यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के लीड्स स्कूल ऑफ मेडिसिन से ग्रैजुएशन कंप्लीट कर लिया. 1974 में वह बतौर डॉक्टर प्रैक्टिस करने लगा. 


मां की वजह से सीरियल किलर बना फ्रेड शिपमैन 
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हेरॉल्ड फ्रेडरिक शिपमैन के सीरियल किलर बनने की वजह उसकी अपनी मां थी. उसे बार-बार अपनी मां का आखिरी वक्त याद आता था, जो बेहद दर्दनाक था. ऐसे में जब बुजुर्ग मरीज उसके पास इलाज कराने आते तो वह उन्हें दर्द से मुक्ति दिलाने के मकसद से जान से मार देता था. 


जांच के दायरे में ऐसे आया डॉक्टर डेथ
मार्च 1998 के दौरान ब्रूक सर्जरी की डॉ. लिंडा रेनॉल्ड्स ने शिपमैन के मरीजों के हाई डेथ रेट को लेकर चिंता जाहिर की. दरअसल, शिपमैन के जितने भी मरीजों की मौत हुई थी, उनमें बुजुर्ग महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा थी. इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच तो की, लेकिन उनके हाथ ऐसा कोई सबूत नहीं लगा, जिससे शिपमैन को गिरफ्तार किया जा सके. जब तक यह जांच बंद हुई, तब तक डॉक्टर डेथ ने तीन और मरीजों का कत्ल कर दिया था. 


ड्राइवर ने किया डॉक्टर डेथ का पर्दाफाश
पुलिस की जांच से तो डॉक्टर डेथ बच गया, लेकिन कुछ महीने बाद टैक्सी ड्राइवर जॉन शॉ ने शिपमैन पर बुजुर्ग मरीजों की हत्या करने का आरोप लगाया. उसका कहना था कि जब वह 21 मरीजों को अस्पताल लेकर गया था. उस वक्त वे स्वस्थ थे, लेकिन शिपमैन की देखरेख में उनकी मौत हो गई. शिपमैन की आखिरी शिकार हाइड की पूर्व मेयर कैथलिन ग्रुंडी थीं, जो 24 जून 1998 के दिन अपने घर में मृत मिली थीं. उन्हें आखिरी बार शिपमैन ने ही जीवित देखा था और उनके डेथ सर्टिफिकेट पर भी शिपमैन ने ही हस्ताक्षर किए थे. जांच में सामने आया कि शिपमैन ब्लड सैंपल लेने के लिए कैथलिन ग्रुंडी के घर गया था. इसके बाद उसने बुजुर्ग महिला को डायमॉर्फिन का इंजेक्शन लगा दिया, जिससे उनकी मौत हो गई. 


जेल में ही कर ली आत्महत्या
7 सितंबर 1998 के दिन शिपमैन को गिरफ्तार कर लिया गया. जांच के दौरान उस पर करीब 250 हत्याओं का आरोप लगाया गया, जिनमें मॉर्फिन का इंजेक्शन देकर 15 महिलाओं के कत्ल का दोष उस पर साबित हुआ. हालांकि, डॉक्टर डेथ ने एक भी हत्या का आरोप खुद नहीं कबूला, लेकिन जानकार मानते हैं कि हकीकत में डॉक्टर डेथ ने कितने कत्ल किए थे, इसका अंदाजा उसे खुद नहीं था. 15 महिलाओं की हत्या का दोष सिद्ध होने पर उसे मौत होने तक कैद की सजा सुनाई गई. हालांकि, उसने 13 जनवरी 2004 के दिन जेल में ही फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. 


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