कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर केस को लेकर विरोध प्रदर्शन अभी भी जारी है. इस केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस (सीजीआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला , जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई की है. सीजेआई ने कहा है कि व्यवस्था में सुधार के लिए हम और एक रेप का इंतजार नहीं कर सकते हैं. आज हम आपको भारत के अलावा के बाकी देशों में डॉक्टर्स के खिलाफ जारी हिंसा के बारे में बताएंगे. 


सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई


सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस (सीजीआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला , जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई की है. कोर्ट के आदेश के बाद डॉक्टर्स की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए टास्क फोर्स बनाया जा रहा है, इसमें 9 डॉक्टर्स को शामिल किया गया है, जो मेडिकल प्रोफेशनल्स की सुरक्षा, वर्किंग कंडीशन और उनकी बेहतरी के उपायों की सिफारिश करेगी. वहीं टास्क फोर्स में केंद्र सरकार के पांच अधिकारी भी शामिल किये गए हैं.


हिंसा का शिकार


बता दें कि द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन  दुनिया में चिकित्सा की तीसरी सबसे अच्छी पत्रिकाओं में एक है. इसके मुताबिक डॉक्टर्स के खिलाफ हिंसा एक वैश्विक समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 8% से 38% स्वास्थ्य कर्मियों को अपने करियर में किसी ना किसी समय शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है.


किस देश में सबसे ज्यादा हिंसा


सर्वेक्षणों रिपोर्ट्स के मुताबिक कार्यस्थल पर हिंसा का सामना करने वाले डॉक्टरों का प्रतिशत चीन में 85%, भारत में 75% और अमेरिका में 47% है. वहीं हमलावर ज़्यादातर मरीज़ और उनके रिश्तेदार होते हैं, वहीं अमेरिका में, 97% मामलों में हमलावर मरीज़ ही होता है. विभागों के मुताबिक प्रसूति और स्त्री रोग से 39%, सर्जरी से 30%, चिकित्सा से 27% और अन्य विभागों से 4% हिंसा के मामले सामने आते हैं. वहीं जो युवा और कम अनुभवी डॉक्टर हैं, वो हिंसा के प्रति ज़्यादा संवेदनशील पाए गए हैं.


डॉक्टर्स में डर


इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा हाल ही में जारी सर्वेक्षण से पता चला है कि 82.7% डॉक्टर पेशे में तनाव महसूस करते हैं. वहीं 62.8% हिंसा से डरते हैं और 46.3% कहते हैं कि हिंसा उनके तनाव का मुख्य कारण है.


हिंसा का मुख्य कारण


अधिकांश अस्पतालों में हिंसा का मुख्य कारण मरीजों और उनके परिजनों द्वारा डॉक्टर की लापरवाही को मानना है. हालांकि लोग ये मानने को तैयार नहीं है कि चिकित्सा कोई सटीक विज्ञान नहीं है. 


डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा कैसे होगी कम 


हिंसा को लेकर डॉक्टरों का मानना है कि स्वास्थ्य कर्मियों और प्रतिष्ठानों के खिलाफ हिंसा को गैर-जमानती बनाने और लंबी जेल की सजा और भारी जुर्माना जैसा कानून होना चाहिए. 


इन राज्यों में सख्त कानून


बता दें कि भारत के उन्नीस से ज्यादा राज्यों में स्वास्थ्य कर्मियों और प्रतिष्ठानों को हिंसा से बचाने के लिए सख्त कानून है. पहला ऐसा राज्य कानून आंध्र प्रदेश में 2007 में मुख्यमंत्री वाईएस राज शेखर रेड्डी ने लागू किया था, जो खुद एक डॉक्टर थे. इस कानून ने डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को गैर-जमानती अपराध बना दिया था, जिसके लिए पचास हजार रुपये तक का जुर्माना और तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य राज्यों ने भी इसी तरह के कानून बनाए गये है. 


डॉक्टर्स की सुरक्षा कैसे होगी 


• कई बार डॉक्टर्स की अपनी गलती के कारण भी हिंसा होती है. हिंसा कुछ हद तक रोकने के लिए डॉक्टरों को ऐसा इलाज नहीं करना चाहिए, जिसके लिए वे प्रशिक्षित नहीं है.
• डॉक्टरों को प्रभावी संचार और अच्छे पारस्परिक कौशल के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.
• वहीं उपचार से जुड़े नहीं एक वरिष्ठ डॉक्टर को स्थिति को कम करने के लिए रोगी के रिश्तेदारों से बातचीत करनी चाहिए.
• प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा कर्मचारी होने चाहिए और सुरक्षा अलार्म सिस्टम होना चाहिए. 
• प्रतिष्ठानों में 24 घंटे प्रशिक्षित पर्यवेक्षकों के साथ सीसीटीवी कैमरे, पैनिक बटन और आपातकालीन विभाग में प्रवेश पर बेहतर नियंत्रण होना चाहिए.
• रोगियों को हल्के रोगों के लिए पारिवारिक चिकित्सक/सामान्य चिकित्सक से परामर्श करने के लिए प्रोत्साहित करके अस्पतालों में भीड़भाड़ को कम किया जाना चाहिए.


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