भारतीय संविधान देश में रहने वाले सभी लोगों के लिए एक सामान है. भारत में कानूनी प्रकिया और अदालत के फैसले भी हर धर्म और जाति के लोगों के लिए एक बराबर है. लेकिन धर्मों के मुताबिक पर्सनल लॉ अलग-अलग हैं. भारत में सभी मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) कानून मानते हैं, इसी के जरिए मुसलमानों के बीच विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, विरासत और दान से संबंधित कार्य होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिला विरोधी नियम क्या-क्या है. आज मुस्लिम महिला अधिकार दिवस पर हम आपको इसके बारे में बताएंगे. 


मुस्लिम महिला अधिकार दिवस


गौरतलब है कि 5 साल पहले 1 अगस्त 2019 के दिन तीन तलाक को कानूनी रूप से अपराध घोषित कर दिया गया था. जिसके बाद 2 साल बाद केंद्र सरकार ने तीन तलाक को अपराध घोषित किए जाने वाले दिन 1 अगस्त को “मुस्लिम महिला अधिकार दिवस” के रूप में मनाए जाने का फैसला किया था. जिसके बाद हर साल 1 अगस्त के दिन को मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है. 


क्या है मुस्लिम विरोधी कानून


• तलाक-ए-अहसनः इसमें शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसका मासिक धर्म नहीं चल रहा है. हालांकि इसे तीन महीने में वापस भी लिया जा सकता है, जिसे 'इद्दत' कहा जाता है. अगर इद्दत की अवधि खत्म होने के बाद भी तलाक वापस नहीं लिया जाता है, तो तलाक को स्थायी माना जाता है. इसके बाद पति-पत्नी अलग हो जाते हैं.
• तलाक-ए-हसनः इसमें तीन महीने में तीन बार तलाक देना पड़ता है. इसके लिए शौहर महीने में एक बार तलाक बोलकर या लिखकर दे सकता है. हालांकि इसमें भी तलाक तभी दिया जाता है, जब बीवी का मासिक धर्म नहीं चल रहा होता है. इसमें भी इद्दत की अवधि खत्म होने से पहले तलाक वापस लेने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया में तलाकशुदा शौहर और बीवी फिर से शादी कर सकते हैं. लेकिन ये तभी होता है जब बीवी किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करके उसे तलाक देती है. इस प्रक्रिया को 'हलाला' कहा जाता है.
• तलाक-ए-बिद्दतः इसको तीन तलाक भी कहा जाता है. इसमें शौहर बीवी को एक ही बार में तीन बार बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है. इसमें सिर्फ तीन बार तलाक बोलने से शादी तुरंत टूट जाती है. हालांकि अब तीन तलाक देना गैर कानूनी है, ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा का प्रावधान है. इस प्रक्रिया में भी तलाकशुदा शौहर-बीवी दोबारा शादी कर सकते थे, लेकिन उसके लिए हलाला की प्रक्रिया को अपनाया जाता है. 
• तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 के मद्देनजर एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला धारा 125 सीआरपीसी के तहत किसी भी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार नहीं है.
• इस्लामी कानून के मुताबिक एक मुस्लिम पुरुष एक ही समय में चार महिलाओं से शादी कर सकता है. 


बता दें कि जब आप इन इस्लामिक कानूनों पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि ये सभी कानून महिला विरोधी हैं. क्योंकि इन कानून के मुताबिक एक पुरुष को महिला से अधिक अधिकार प्राप्त है, जिसके कारण वह इन अधिकारों का इस्तेमाल करके अपनी पत्नी यानी मुस्लिम महिला को तलाक दे सकता है. 


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