चांद को लेकर किताबों में बचपन से हमने बहुत कुछ पढ़ा है. चांद पर जीवन को लेकर भी वैज्ञानिक लगातार कुछ ना कुछ रिसर्च करते रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कल यानी 24 फरवरी की रात जो चांद निकला था, उसे हंगर मून कहा जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों बीती रात दिखने वाले मून को स्नो मून या हंगर मून कहा जाता है.
हंगर मून
बीते 24 फरवरी को दिखने वाले चांद को कई नामों से जाना जाता है. जिसमें ‘मिनीमून’ ‘माइक्रोमून’ ‘स्नो मून’ और ‘हंगर मून’ नाम शामिल है. बता दें कि ‘स्नो मून’ के रूप में इसके नाम की शुरुआत 1930 के दशक में हुई थी. वहीं पूर्वोत्तर अमेरिका की जनजातियाँ इसे स्नो मून कहते हैं क्योंकि इस मौसम में भारी बर्फबारी होती है. वहीं खराब मौसम और भारी बर्फीले तूफान के कारण शिकार करना मुश्किल होता था, इसलिए इस चंद्रमा को हंगर मून भी कहा जाता है.
चांद की रोशनी कब पहुंचती है धरती पर?
चांद और धरती के बीच की दूरी और प्रकाश की गति के आधार पर चांद की रोशनी धरती तक सिर्फ 1.3 सेकंड में पहुंच जाती है. वहीं सूर्य पृथ्वी से 14.96 करोड़ किमी दूर है. इसलिए सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 16.6 सेकंड लगते हैं.
क्यों बदलता चांद का आकार
आपने देखा होगा कि चांद हर रोज पूरा गोल नहीं दिखाई देता है. इसका आकार घटता और बढ़ता रहता है. बता दें कि चंद्रमा धरती का एक चक्कर 30 दिन में पूरा करता है. इस दौरान वह एक बार पृथ्वी व सूर्य के बीच में आता है तो एक बार पृथ्वी के पीछे आता है. चक्कर लगाने के दौरान वह सूर्य तथा पृथ्वी से अलग-अलग कोण बनाता है. जब चंद्रमा पृथ्वी के आगे आता है, तब सूर्य से आने वाली किरणें प्रतिबिंबित होकर धरती पर नहीं पड़ती हैं. ऐसा अमावस की रात होता है. वहीं जब चंद्रमा पृथ्वी के पीछे होता है, तो सूर्य की किरणें चंद्रमा पर पड़कर पृथ्वी तक सीधे आती हैं और चांद पूरा गोल दिखाई देता है. चांद की इस स्थिति को पूर्णिमा की रात कहा जाता है. वहीं महीने में दो बार सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा समकोण बनाते हैं. ऐसे में चंद्रमा आधा दिखाई देता है. इसी तरह अलग-अलग कोणों के कारण चंद्रमा के अलग आकार दिखाई देते हैं.
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