प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सबसे लंबे केबल पुल ‘सुदर्शन सेतु’ का उद्घाटन किया. ये पुल गुजरात के द्वारका में बना है और इस पुल की भव्यता की काफी चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया पर भी इस पुल की तस्वीर वायरल हो रही है. ये पुल अरब सागर में बेयट द्वारका द्वीप को मुख्य भूमि ओखा से जोड़ने का काम करेगा. आपने भी इसकी भव्यता के बारे में काफी सुना होगा, लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर समुद्र के बीच में के ये पुल कैसे बनाए जाते हैं. तो आज आपको बताते हैं कि हमेशा पानी रहने के बाद भी किस तरह पुल बनाया जाता है....
किसी भी नदी या समुद्र में पुल बनाने से पहले उस जगह की अच्छे से जांच की जाती है. ये देखा जाता है कि वहां पुल बन सकता है या नहीं और किन-किन जगहों पर पिलर बनाए जा सकते हैं. जब समुद्र में ज्यादा गहराई होती है तो उसके हिसाब से जमीन चुनी जाती है. इसका प्लान बनाने के बाद पुल बनाने का काम शुरू होता है. फिर पानी के बहाव, मिट्टी की स्थिति आदि को ध्यान में रखते हुए पुल बनाया जाता है.
क्या होता है पूरा प्रोसेस?
पानी में भी पुल नींव भरकर ही बनाया जाता है. इसके लिए पिलर के लिए गहरी नींव भरी जाती है और इस नींव को भरने के लिए पहले एक स्पेस बनाया जाता है. आपने कभी मौत का कुआं देखा है, जिसमें कार या बाइक पर स्टंट किए जाते हैं, ठीक उसी तरह पानी में ऐस स्पेस तैयार किया जाता है. इस तरह की नींव का नाम Cofferdam होता हैं. इसके लिए बड़ी-बड़ी प्लेट्स को आपस में जोड़ा जाता है और पानी के बीच में एक कुआं जैसा बना लिया जाता है.
इसके बाद इस कुएं जितने स्पेस में पानी अंदर नहीं आ पाता है और ना हा बाहर जा पाता है. ये वैसे ही जैसे आप किसी पाइप को पानी के बीच जमीन में गाड़ दें या पानी के गिलास में एक स्ट्रॉ को रख दें. फिर इसके बीच के पानी को निकाल लिया जाता है और ऐसे में पानी के बीच एक खाली स्पेस तैयार बन जाता है.नदी में बहने वाला पानी आस-पास से बह जाता है पर इसके अंदर नहीं आता है. फिर इसमें पिलर का निर्माण किया जाता है और बाहरी Cofferdam को हटा लिया जाता है. ऐसे एक-एक करके कई पिलर बना लिए जाते हैं.
इन पिलर का निर्माण होने के बाद उनके ऊपर प्लेटफॉर्म बनाकर पूरा पुल तैयार कर लिया जाता है. पिलर को सीमेंट और कंक्रीट आदि से अच्छे से भरकर मजबूती दी जाती है.
कितना खास है ये पुल?
- आधिकारिक जानकारी के अनुसार, 2.32 किलोमीटर लंबे इस पुल का निर्माण 979 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है.
- पूरे पुल के बीच में 900 मीटर लंबा केबल आधारित हिस्सा है और पुल तक पहुंचने के लिए 2.45 किलोमीटर लंबा सड़क मार्ग है.
- बता दें कि चार लेन वाले 27.20 मीटर चौड़े पुल के दोनों तरफ 2.50 मीटर चौड़े पैदलपथ हैं.
- इस पुल को पहले ‘सिग्नेचर ब्रिज’ के नाम से जाना जाता था और अब उसका नाम बदलकर ‘सुदर्शन सेतु’ कर दिया गया है.
- बेयट द्वारका ओखा बंदरगाह के पास एक द्वीप है, जो द्वारका शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है जहां भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है.
- पहले तीर्थयात्रियों को बेयट द्वारका तक पहुंचने के लिए नौका परिवहन पर निर्भर रहना पड़ता था और इस पुल के निर्माण से वे कभी भी यात्रा कर सकेंगे.
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