(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
नारी शक्ति वंदन बिल: जानिए अधिनियम, अध्यादेश और बिल में क्या अंतर होता है
नारी शक्ति वंदन बिल पेश होने के बाद से ही इंटरनेट पर लोग अधिनियम, बिल और अध्यादेश जैसे शब्दों का मतलब तलाश रहे हैं. यहां आपको तीनों शब्दों का मतलब और इनके बीच के अंतर के बारे में बताया गया है.
केंद्र सरकार ने लोकसभा में नारी शक्ति वंदन बिल पेश किया है. लेकिन इसके कानून बनने में अभी थोड़ी देर है. दरअसल, कोई कॉन्स्टिट्यूशनल बिल तब कानून बनता है जब यह दोनों सदनों में पास हो जाए और इस पर आधे से ज्यादा राज्यों की सहमति की मुहर के साथ-साथ राष्ट्रपति का हस्ताक्षर और राष्ट्रपति द्वारा इसके लिए एक नॉटिफिकेशन जारी कर दिया जाए. ऐसा होने के बाद ही पूरे देश में ये समान रूप से लागू हो जाता है.
हालांकि, जब भी लोकसभा में कोई बिल आता है तो अधिनियम, बिल, कानून और अध्यादेश जैसे शब्दों का जिक्र होता है. तो चलिए आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर अधिनियम, अध्यादेश और बिल में क्या अंतर होता है.
क्या होता है बिल?
जब तक कि कोई कानून लोकसभा और राज्य सभा से पास ना हो जाए तब तक उसे बिल कहते हैं. जैसे अभी केंद्र सरकार ने नारी शक्ति वंदन बिल को लोकसभा में पेश किया है. जब ये पास हो जाएगा तो यह अधिनियम बन जाएगा. हालांकि, अगर आप ये समझ रहे हैं कि जब दोनों सदनों से कोई बिल पास हो जाए तो वो ऑटोमैटिक कानून बन जाता है तो आप ग़लत हैं. दरअसल, कोई भी कॉन्स्टिट्यूशनल बिल कानून बनने से पहले अधिनियम बनता है और इसकी अंतिम प्रक्रिया इसे कानून बनाती है.
अब अधिनियम और कानून में अंतर समझिए
दरअसल, किसी भी बिल को अधिनियम बनने के लिए सबसे पहले लोकसभा और राज्यसभा में पास होना होता है और इसके साथ ही आधे से ज्यादा राज्यों की इस पर सहमति की मुहर के साथ-साथ राष्ट्रपति का हस्ताक्षर और राष्ट्रपति द्वारा इसके लिए एक नॉटिफिकेशन जारी किया जाना भी आनिवार्य होता है. इस पूरी प्रक्रिया के बाद ही कोई बिल अधिनियम बनता है. हालांकि, ये कानून तब तक नहीं माना जाता, जब तक कि इसे ज़मीन पर लागू ना कर दिया जाए. साफ शब्दों में कहूं तो किसी भी बिल को कानून बनने में तीन चरणों को पार करना होता है. यानी पहले बिल, फिर अधिनियम और अंतिम में वो कानून बनता है.
अध्यादेश क्या होता है?
आसान भाषा में समझें तो अध्यादेश कम समय के लिए बनाया गया एक कानून होता है. इसके लिए सरकार को त्वरित रूप से संसद के इजाजत की जरूरत नहीं होती. हालांकि, बाद में फिर इस कानून के लिए संसद की इजाजत सरकार को लेनी पड़ती है. आपको बता दें, केंद्रीय कैबिनेट की सलाह पर राष्ट्रपति जब चाहे अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है. वहीं राज्यों में ये अध्यादेश राज्यपाल जारी करते हैं.
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