नीले रंग का नहीं है नेपच्यून और यूरेनस ग्रह, नए शोध में सामने आया असली रंग
नए रिसर्च में पता चला है कि सौर मंडल के सबसे आखिरी ग्रह नेप्च्यून और यूरेनस के रंग पहले के रिसर्च से अलग हैं. आइए जानते हैं कि ये ग्रह किस रंग के दिखते हैं.
सौरमंडल के सभी ग्रह बहुत अलग-अलग हैं, लेकिन कई ग्रहों मे समानताएं भी देखने को मिलती हैं. पृथ्वी और मंगल में कई समानताएं हैं तो पृथ्वी शुक्र में कई भिन्नताएं होने के बाद भी कुछ समानताएं हैं. ऐसा ही कुछ यूरेनस (Uranus) और नेप्च्यून (Neptune) ग्रहों में भी है. दरअसल ब्रिटेन के एक नए रिसर्च में पता चला है कि सौर मंडल के सबसे आखिरी ग्रहों नेप्च्यून और यूरेनस का रंग नीला नहीं है.
क्या कहता है रिसर्च ?
ब्रिटेन के खगोलविदों के नेतृत्व में अब एक नया शोध किया गया है. इसमें पता चला है कि सौर मंडल के सबसे आखिरी ग्रहों नेप्च्यून और यूरेनस के रंग पहले के रिसर्च से अलग हैं. 1980 के दशक में चलाए गए अंतरिक्ष मिशन से दोनों ग्रहों की तस्वीरें सामने आई थी. उसमें नेप्च्यून का रंग गहरा नीला और यूरेनस का हरा था. लेकिन नए अध्ययन से पता चला है कि दोनों ग्रहों का रंग हरे-नीले रंग के शेड वाला है. बता दें कि इन दो ग्रहों को हीरे की बारिश वाला ग्रह भी कहा जाता है. यह दोनों ग्रह विशाल बर्फ से बने हैं. यह पता चला है कि नेप्च्यून की पिछली तस्वीरों को ग्रह के वायुमंडल का विवरण दिखाने के लिए गहरा किया गया था, इस कारण उसका असली रंग बदल गया था.
क्या है असली रंग
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कैथरीन हेमैन्स ने बीबीसी रेडियो से बातचीत में बताया कि उन्होंने तस्वीरों के साथ पहले कुछ ऐसा किया जो आज इंस्टाग्राम पर फोटो अपलोड करते समय हर कोई करता है. उन्होंने कहा कि नेप्च्यून के वातावरण में मौजूद विशेषताओं को दिखाने के लिए नीले रंग को गाढ़ा किया गया था, जो हम देख सकते हैं. यही कारण है कि पहले की फोटो बहुत नीली दिखती है. लेकिन वास्तव में नेप्च्यून का रंग यूरेनस के समान है.
वहीं शोध का नेतृत्व करने वाले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पैट्रिक इरविन के मुताबिक खगोलविदों को लंबे समय से पता है कि दोनों ग्रहों की तस्वीरें उनके वास्तविक रंग जैसी नहीं दिखती. उन्होंने आगे कहा कि कृत्रिम रूप से रंग को उस समय ग्रह वैज्ञानिक जानते थे. इसके अलावा जब इन तस्वीरों को जारी किया गया तो इस बात को कैप्शन में भी लिखा गया था. लेकिन वह समय के साथ खो गया था. इसके अलावा रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के उप निदेशक डॉ. रॉबर्ट मैसी ने बताया कि खगोलीय अनुसंधान में तस्वीरों के रंगों को बदलना सामान्य प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि चीजों को देखने के लिए उन्हें इसी तरह से बदला जाता है. रॉबर्ट मैसी ने आगे कहा कि यह सोचना गलत है कि इसे लोगों से छिपाया गया है.
ये भी पढ़े:वेश्यालय वाली जगह को रेड लाइट एरिया ही क्यों बोलते हैं? ब्लू या ब्लैक लाइट क्यों नहीं?