अब अंतरिक्ष में भी पैदा होगा मांस, जानिए कैसे इजरायली कंपनी करने जा रही है ये अनोखा काम
कृत्रिम मांस बनाने के लिए यह कंपनी अपने लैब में कोशिकाओं को तब तक मल्टीप्लाई कराती है, जब तक कि वह टिश्शु नहीं बन जाता और आखिर में इसी प्रक्रिया के माध्यम से पूरा एक मांस का टुकड़ा तैयार होता है.
आपने अंतरिक्ष में फूल, पौधे, फल, सब्जियां उगाने के कई कार्यक्रमों के बारे में सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब अंतरिक्ष में मांस पैदा करने का भी प्रयोग चल रहा है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को एक अच्छा प्रोटीन सोर्स दिया जा सके. हालांकि, इसमें सबसे रोचक बात यह है कि मांस को धरती से ले नहीं जाया जा रहा है, बल्कि कोशिकाओं के जरिए उसे वहीं अंतरिक्ष यान में ही तैयार किया जाएगा. आज इस आर्टिकल में हम आपको उसी से जुड़ी तमाम जानकारियां देंगे.
कौन बना रहा है अंतरिक्ष में मांस
इस अनोखे काम को अंजाम दे रही है इजराइल की कंपनी अलिफ फार्म्स. अलिफ फार्म्स मांस पैदा करने में पहले भी अव्वल रही है, लेकिन स्पेस में इसे पैदा करने की यह उसकी पहली कोशिश है. कुछ दिनों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर इसके लिए रिसर्च भी शुरू हो जाएगी. रिसर्चस को उम्मीद है कि अगर यह सफल रहा तो भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक अच्छे और भरोसेमंद प्रोटीन सोर्स का इंतजाम हो जाएगा.
कैसे पैदा किया जाता है मांस
कृत्रिम मांस बनाने के लिए यह कंपनी अपने लैब में कोशिकाओं को तब तक मल्टीप्लाई कराती है, जब तक कि वह टिश्शु नहीं बन जाता और आखिर में इसी प्रक्रिया के माध्यम से पूरा एक मांस का टुकड़ा तैयार होता है, जिसे हम खा सकते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को कल्टीवेशन या प्रोलिफेरेशन कहा जाता है. इस मांस को ऐसे टैंकों में बनाया जाता है, जो देखने में बिल्कुल शराब की फैक्ट्री में इस्तेमाल किए जाने वाले टैंकों की तरह होते हैं. इस तरह से पैदा किए गए मांस के समर्थकों का कहना है कि यह पर्यावरण के लिए फायदेमंद साबित होगा और इस प्रोसेस से मांस बनाने की वजह से मीथेन का उत्सर्जन में बेहद कम होगा.
क्या इससे सचमुच फायदा होगा
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह प्रयोग कामयाब रहा तो भी इससे बहुत ज्यादा फायदा होगा, ऐसा भी साफ साफ शब्दों में नहीं कहा जा सकता. इस नए रिसर्च में अब तक करोड़ों डॉलर का निवेश हो चुका है और सबसे बड़ी बात किसमें मुनाफा सिर्फ स्पेस में मांस भेजकर नहीं होगा. अगर इसे जमीनी तौर पर कामयाब बनाना है तो इसमें लगने वाले खर्चे को कम करना होगा. क्योंकि जितनी लागत में यह तैयार होगा उससे बहुत ही कम लागत में बाजारों में ताजा मीट उपलब्ध होगा. दूसरी बात कैसे खाने से भविष्य में कोई नुकसान नहीं होगा इस पर भी एक और गहन अध्ययन की जरूरत है.
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