One Nation One Election: भारत में एक बार फिर 'एक देश एक चुनाव' को लेकर बहस तेज हो चुकी है. मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है, जिसमें वन नेशनल वन इलेक्शन को लेकर बिल पेश किया जा सकता है. हालांकि सरकार की तरफ से अब तक इस पर कोई भी जानकारी नहीं दी गई है. इन अटकलों के बीच विपक्षी दलों के रिएक्शन भी सामने आ रहे हैं. जिनमें ज्यादातर नेता इसका विरोध कर रहे हैं. हालांकि भारत में पहले भी इसी फॉर्मूले के तहत चुनाव हो चुके हैं. आजादी के बाद होने वाले कुछ चुनावों में वन नेशन वन इलेक्शन वाली व्यवस्था से ही चुनाव कराए गए.
सरकार कर रही तैयारी
मौजूदा बहस की बात करें तो मोदी सरकार पिछले कई दिनों से इस मुद्दे को लेकर फ्रंट फुट पर है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी वकालत करते आए हैं. जिसमें लोकसभा चुनावों के साथ ही तमाम राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराने की व्यवस्था होगी. जिसके बाद अब सरकार संसद के विशेष सत्र में इसे लेकर बिल पेश कर सकती है. सरकार का तर्क है कि इससे करोड़ों रुपये और वक्त बच जाएगा.
देश में एक साथ हुए चुनाव
भले ही 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लेकर अब बहस शुरू हुई हो और इसके फायदे और नुकसान गिनाए जा रहे हों, लेकिन इस व्यवस्था के तहत चार बार पहले चुनाव हो चुके हैं. आजादी के बाद 1952 में हुआ पहला चुनाव भी इसी व्यवस्था के तहत हुआ. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए. हालांकि इसके बाद इस व्यवस्था पर ब्रेक लग गया.
कई राज्यों में सरकारें गिरने लगीं और विधानसभा को भंग करना पड़ा. जिसके चलते एक साथ चुनाव कराने की ये व्यवस्था गड़बड़ा गई और बाद में राज्यों के चुनाव अलग होने लगे. हालांकि इसके बाद लॉ कमीशन की तरफ से 1990 में वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया गया था. हालांकि तब इसे लागू करने पर विचार नहीं किया गया.
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