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एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में होंगे कितने संशोधन, यह प्रक्रिया लागू होने से बचेगा कितना पैसा?

One Nation One Election: एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव में 1115 करोड़ का खर्च हुआ था. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में 3870 करोड़ का खर्च हुआ था.

एक देश एक चुनाव यानी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चर्चा अब अपने चरम पर है. यहां तक कि इसकी संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने भी गुरुवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. 191 दिनों में तैयार हुई 18,626 पन्नों की इस रिपोर्ट में 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति को साझा किए हैं.

सबसे बड़ी बात कि इसमें 32 राजनीतिक दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है. अब सवाल उठता है कि क्या इस रिपोर्ट के बाद देश में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के लिए रास्ता साफ हो जाएगा या फिर अभी इसे कई संवैधानिक सवालों की कसौटी पर खरा उतरना होगा? इसके अलावा इस आर्टिकल में हम ये भी जानेंगे कि एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में होंगे कितने संशोधन करने होंगे और अगर ऐसा हो गया तो इस प्रक्रिया को लागू होने से देश का कितना पैसा बचेगा.

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' ये स्लोगन ही अपने आप में इस सवाल का जवाब है. आसान भाषा में समझाएं तो वन नेशन वन इलेक्शन का अर्थ है एक साथ सभी राज्यों के विधानसभा और देश का लोकसभा चुनाव संपन्न हो जाए. दुनिया के कई देशों में ऐसा पहले से हो रहा है. यहां तक कि भारत में भी 1967 तक लोकसभा और राज्यों के विधानसभा का चुनाव एक साथ ही संपन्न होता था.

जबकि, फिलहाल की बात करें तो स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, फिलीपींस, बोलिविया, कोलंबिया, कोस्‍टोरिका, ग्वाटेमाला, गुयाना और होंडुरास जैसे देशों में भी राष्ट्रपति प्रणाली के तहत राष्ट्रपति और विधायी चुनाव एक साथ होते हैं.  यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का फॉर्मेट भी काफी हद तक वन नेशन वन इलेक्शन जैसा ही है.

संविधान में कितने संशोधन करने होंगे?

अब आते हैं इस सवाल पर कि अगर देश में वन नेशन वन इलेक्शन वाला फॉर्मेट लागू करना है तो फिर इसके लिए संविधान में कितने संशोधन करने होंगे. रिपोर्ट्स की मानें तो वन नेशन वन इलेक्शन को देश में लागू करने के लिए संविधान में कम से मक 18 संशोधन करने होंगे. इसके अलावा अनुच्छेद 325 और 324 ए में भी बदलाव करने होंगे.

वहीं बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि अगर सरकार देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना चाहे तो इसके लिए संविधान के 5 अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा. इसके अलावा विधानसभाओं के कार्यकाल और राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रावधानों को भी बदलना होगा.

इससे कितना पैसा बचेगा?

वन नेशन वन इलेक्शन से देश का कितना पैसा बचेगा ये जानने से पहले समझ लीजिए कि भारत में चुनाव कराने में कितना पैसा खर्च होता है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे तो उसमें  55000 करोड़ रुपए का खर्च आया था. वहीं इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव में 1115 करोड़ का खर्च हुआ था. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में 3870 करोड़ का खर्च हुआ था.

वहीं साल 2022 में जब पांच राज्यों के चुनाव हुए थे तब चुनाव आयोग ने पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों में हुए खर्च की जानकारी देते हुए बताया था कि इन राज्यों के चुनाव में 500 करोड़ से ज्यादा की रकम सिर्फ चुनाव प्रचार में ही खर्च हो गई थी. अब आते हैं इस सवाल पर कि अगर देश में सभी चुनाव एक साथ करा दिए जाएं तो फिर कितना खर्च बच सकता है.

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट पर नजर डालनी होगी, जिसमें कहा गया था कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव और देश के अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ करा दिए जाएं तो 4500 करोड़ का खर्च और ज्यादा बढ़ जाएगा. हालांकि, इसके बाद धीरे-धीरे ये खर्च कम होने लगेगा और लेकिन, ये खर्च कितना कम होगा इसके बारे में कोई ठोस शोध फिलहाल मौजूद नहीं है.

ये भी पढ़ें: किसी वेबसाइट, ओटीटी प्लेटफॉर्म और एप का अश्लील कंटेंट कैसे चेक करती है सरकार, क्या इनके ऑपरेटर्स को मिलती है कोई सजा?

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