दुनिया के कितने देशों में लागू है वन नेशन वन इलेक्शन, इससे भारत में कितनी बदल जाएगी चुनाव प्रक्रिया
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ की अध्यक्षता में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है.क्या आप जानते हैं कि दुनिया किन देशों में पहले से ये नियम लागू है
देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन क्या है. वहीं इसके लागू होने से देश की चुनाव प्रक्रिया में क्या बदलाव होगा. जानिए भारत में इससे क्या बदलवा होगा और दुनिया के किन-किन देशों में वन नेशन वन इलेक्शन प्रकिया पहले से लागू है.
इन देशों में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’
बता दें कि दुनिया के कई देशों में चुनाव एक साथ होते हैं. उदाहरण के लिए स्वीडन में हर चार साल में आम चुनाव के साथ राज्यों और जिला परिषदों के चुनाव होते हैं. इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में भी आम चुनाव और राज्यों के चुनाव एक साथ होते हैं. इन चुनावों के दौरान वोटर को अलग-अलग वोटिंग पेपर भी दिए जाते हैं. दुनिया के बाकी देशों में ब्राजील, फिलीपींस, बोलिविया, कोलंबिया,कोस्टोरिका, ग्वाटेमाला, गुयाना और होंडुरास जैसे अन्य देशों में भी राष्ट्रपति प्रणाली के तहत राष्ट्रपति और विधायी चुनाव एक साथ होते हैं.
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ से क्या होगा फायदा
देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से चुनाव पर होने वाला खर्च कम किया जा सतता है. आसाना भाषा में राजकीय कोष पर चुनाव का खर्च कम पड़ेगा. जिससे विकासकार्यों में और तेजी आएगी. इसके अलावा मतदान केंद्रों पर ईवीएम के इंतजाम,सुरक्षा और चुनाव के लिए कर्मचारियों की तैनाती की कवायद बार-बार नहीं करनी पड़ेगी. इससे चुनावी प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इसके अलावा चुनाव एक बार होने से इससे वोट प्रतिशत में इजाफा होगा. वहीं चुनाव आयोग की ओर से बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं, एक बार चुनाव होने से विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे.
चुनाव प्रकिया
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ से देश की पूरी चुनाव प्रकिया बदल जाएगी. इससे पूरे देश में एक साथ चुनाव होंगे. बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब सरकार एक साथ चुनाव कराने के फैसले पर विचार कर रही है. सबसे पहले चुनाव आयोग ने पहली बार 1983 में इस बारे में सरकार को सुझाव दिया था. उस वर्ष प्रकाशित भारत के चुनाव आयोग की पहली वार्षिक रिपोर्ट में इसका विचार आया था. इसके बाद विधि आयोग की ओर से 1999 में इसका विचार आया था. विधि आयोग ने चुनाव सुधार पर अपनी रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी. वहीं 2015 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति, 2017 में नीति आयोग और 2018 में जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने एक साथ चुनाव पर अपनी मसौदा रिपोर्ट जारी की थी.
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