One Nation One Election: आखिरी बार इस साल हुए थे 'वन नेशन वन इलेक्शन' के तहत चुनाव, इंदिरा गांधी के दौर में टूट गई थी परंपरा
One Nation One Election: मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है, जिसके बाद वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बहस तेज हो गई है. आजादी के बाद इस फॉर्मूले से कई बार चुनाव हुए थे.
One Nation One Election: देश में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और उसके ठीक बाद लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं, इसी बीच वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर भी बहस तेज हो गई है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार की तरफ से बुलाए गए संसद के विशेष सत्र में इसे लेकर बिल पेश किया जा सकता है. इसके बाद एक देश एक चुनाव को लेकर बहस तेज हो गई है, कई विपक्षी नेता इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में आखिरी बार कब एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए थे और कैसे ये क्रम टूट गया था? आइए हम आपको बताते हैं...
इसी फॉर्मूले के तहत हुए था आजादी के बाद चुनाव
दरअसल एक देश एक चुनाव की ये बहस नई नहीं है, ऐसा भी नहीं है कि इस फॉर्मूले से पहले चुनाव नहीं हुए हों. आजादी के बाद के चुनाव इसी फॉर्मूले के तहत हुए थे. लगातार चार बार वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव हुए. आजाद भारत का पहला चुनाव (1951-52) भी इसी के तहत हुआ था.
ये था आखिरी वन नेशन वन इलेक्शन
अब अगर आखिरी बार ऐसे चुनाव कराए जाने की बात करें तो साल 1967 में एक देश एक चुनाव के तहत आखिरी बार चुनाव हुआ. जिसके बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाई. इस चुनाव के बाद वन नेशन वन इलेक्शन वाली परंपरा खत्म हो गई. इसका सबसे बड़ा कारण इंदिरा गांधी सरकार का 1970 में अल्पमत में आना था, जिसके चलते लोकसभा भंग कर दी गई. इसके बाद 1971 में मध्यावधि चुनाव कराए गए, जिनमें इंदिरा गांधी की बड़ी जीत हुई.
इसके बाद एक साथ चुनाव कराने का समीकरण गड़बड़ा गया और राज्यों के चुनाव अलग-अलग होने लगे. कई राज्यों में भी सरकारें गिरने और समय से पहले चुनाव होने के चलते ये फॉर्मूला दोबारा लागू नहीं हो पाया. इसके बाद से ही एक देश एक चुनाव को लेकर तमाम रिपोर्ट पेश हुईं, लेकिन कई चीजों के चलते अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका. अब ये मुद्दा मोदी सरकार के एजेंडे में शामिल है, जिसे जल्द पूरा किया जा सकता है.