मानव शरीर कई परस्पर जुड़ी प्रणालियों से बना है. सब एक साथ मिलकर शरीर के लिए काम करते हैं. जैसे तंत्रिका तंत्र, हृदय प्रणाली, श्वसन प्रणाली, पाचन तंत्र और मस्कुलोस्केलेटल प्रणाली समेत अन्य प्रणाली हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मस्तिष्क में ऑक्सीजन कैसे चलता है. दरअसल वैज्ञानिकों ने इसके ऊपर शोध किया है. आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे.
मस्तिष्क में ऑक्सीजन
मानव मस्तिष्क पूरी तरह से उत्पन्न ऊर्जा पर कार्य करता है और ये पूरा ऑक्सीजन पर निर्भर करता है. हालांकि ऑक्सीजन मस्तिष्क में जाकर कैसे वितरित होता है, यह अब तक एक पहेली बना हुआ है. वहीं शोधकर्ताओं ने अब पहली बार एक बायोलुमिनसेंस इमेजिंग तकनीक विकसित की है. ये तकनीक मस्तिष्क में ऑक्सीजन की गति को मैप करती है. जिससे ये पता चलता है कि मस्तिष्क में ऑक्सीजन किन-किन रास्तों से अलग-अलग हिस्सों में पहुंचता है. वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का परीक्षण चूहों के दिमाग में किया है.
शोध में क्या पता चला ?
सेंटर फॉर ट्रांसलेशनल न्यूरोमेडिसिन के सह-निदेशक मैकेन नेडरगार्ड ने बताया कि यह शोध दर्शाता है कि हम मस्तिष्क के व्यापक क्षेत्र में लगातार ऑक्सीजन सांद्रता में बदलाव की निगरानी कर सकते हैं. यह हमें वास्तविक समय में मस्तिष्क में क्या हो रहा है, इसकी अधिक विस्तृत तस्वीर प्रदान करता है. जिससे हमें अस्थायी हाइपोक्सिया के पहले से अज्ञात क्षेत्रों की पहचान करने की अनुमति मिलती है. ये रक्त प्रवाह में परिवर्तन को दर्शाता है, जो न्यूरोलॉजिकल स्थिति को ट्रिगर कर सकता है.
मैकेन नेडरगार्ड ने बताया कि निष्कर्ष यह समझने में मदद कर सकता हैं कि ऑक्सीजन मस्तिष्क में कैसे यात्रा करता है. वहीं हाइपोक्सिया जैसे मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने और इलाज करने के लिए नए दरवाजे खोल सकता है. जो शरीर के ऊतकों तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा में कमी की विशेषता वाली स्थिति है. वहीं ऑक्सीजन की गति को मैप करने के लिए टीम ने ल्यूमिनसेंट प्रोटीन का उपयोग किया है, जो जुगनुओं में पाए जाने वाले बायोलुमिनसेंट प्रोटीन के रासायनिक चचेरे भाई हैं.
चूहों पर किया शोध
शोधकर्ताओं ने वास्तविक समय में चूहों के पूरे कॉर्टेक्स का अवलोकन किया है. बायोलुमिनसेंस की तीव्रता ऑक्सीजन की सांद्रता से मेल खाती है, जिसे शोधकर्ताओं ने जानवरों द्वारा सांस लेने वाली हवा में ऑक्सीजन की मात्रा को बदलकर प्रदर्शित किया है. टीम ने यह समझने की कोशिश की कि क्या होता है जब मस्तिष्क के छोटे हिस्सों को थोड़े समय के लिए ऑक्सीजन नहीं मिलता है.
वहीं चूहों की निगरानी करते समय शोधकर्ताओं ने देखा कि मस्तिष्क के छोटे क्षेत्र रुक-रुक कर कभी-कभी कई सेकंड के लिए अंधेरे में चले जाते थे, जिसका अर्थ था कि ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो गई थी. ये क्षेत्र जिन्हें शोधकर्ताओं ने "हाइपोक्सिक पॉकेट्स" नाम दिया है. बता दें कि आराम की अवस्था के दौरान चूहों के मस्तिष्क में जानवरों के सक्रिय होने की तुलना में अधिक प्रचलित थे. मैकेन नेडरगार्ड ने बताया कि मस्तिष्क में हाइपोक्सिया से जुड़ी बीमारियों की एक श्रृंखला का अध्ययन करने के लिए दरवाजे खुले हैं, जिनमें अल्जाइमर, संवहनी मनोभ्रंश और लंबे समय तक रहने वाला कोविड शामिल है. वहीं जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि विभिन्न प्रायोगिक स्थितियों की प्रतिक्रिया को व्यवस्थित रूप से तलाशने से संकेत मिलता है कि दौड़ने जैसी शारीरिक गतिविधि हाइपोक्सिक क्षेत्रों की घटना को कम सकती हैं.
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